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आज्ञा लेकर जैन मन्दिर बनवाया और हस्तिनापुर कार स्मिथ के शब्दों में जैन साधुओं ने निश्चित आदि जैन तीर्थों के लिए संघ चलाया1 | साहुजी रूप से अकबर को वर्षों तक जैनधर्म की शिक्षा दी के पुत्र सेठ नेमिदास ने बाबर की आज्ञा से तीर्थकरों जिसके कारण उसका आचरण इतना अधिक बदल की अगणित प्रतिमायें निर्माण कराकर पंच गया कि संसार यह समझने लगा कि अकबर जैनकल्याणक उत्सव द्वारा इनकी प्रतिष्ठा कराकर अनेक धर्मी हो गया । जैन त्यौहारों पर जीवहत्या करने जैन मन्दिरों में विराजमान कराई 42 ।
वाले अपराधी को मृत्यु दण्ड घोषित किया ।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा० ईश्वरी प्रसाद के अनु8. हुमायू (1530-1540 ई०) के राज्य
सार अकबर द्वारा स्वयं मांस-भक्षण का त्याग और काल में इस युग के प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव
प्राणियों को किसी प्रकार का दुःख देने पर रोक का प्रादि पुराण रचा गया जिसमें उनके जीवन से
लगाना केवल जैन साधुओं के प्रभाव का फल था। सम्बन्धित 500 चित्र लगभग 450 वर्ष प्राचीन ।
स्वयं अकबर के विचार उस के राज्य मन्त्री अबूल चित्रकला के महत्व को सिद्ध करते हैं। इस सचित्र
फजल ने प्राइना-ए-अकबरी में लिखते हुए बताया आप सप का एक भात आज मा जयपुर के है कि अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन और मिष्टान्न तेरापंथी दि० जैन मन्दिर में सुरक्षित है। सुप्रसिद्ध
प्राप्त होने पर भी मनुष्य अपने पेट को पशुओं की जैन विद्वान पं० बनारसीदास के बाबा मूलचन्द
कब्र बना रहा है52 । अकबर का आचरण देखकर जैन का हुमायू बड़ा आदर सत्कार करते थे और
पुर्तगीज पादरी पीन हेरू ने जो अकबर के समय उनको जागीर प्रदान की थी43 ।
भारत की यात्रा को आया था, 3 सितम्बर 1595
ई० में अपने बादशाह को अपने पत्र में सूचित 9. शेर शाह सूरि (1540-1555 ई०) के
किया कि अकबर जैन धर्म का अनुयायी है। राज में जहां भी चोरी आदि अपराध होते थे, वहां
मुस्लिम बादशाहों के खजाञ्ची साधारण रूप से जैन के शासक द्वारा मुखिया और कोतवाल को भी
धर्मी होते रहे परन्तु अकबर की टकसाल का महाउतना ही दण्ड दिया जाता था जितना अपराधी
अधिकारी साह रनवीर भी जैन था जिस की को दिया जावे । इस लिए इसके राज्य में जनता
ईमानदारी से प्रसन्न होकर अकबर ने उसे भूमि खुले किवाड़ सोती थी। पिशावर से कलकत्ते
जागीर में दी जिस में उस ने एक नगर बसाया तक पक्की सड़क बनवाई जिसको आजकल G. T.
और अपने नाम साह रनबीर पर उस नगर का Road कहते हैं । प्रत्येक वर्ष पौने दो लाख स्वर्ण
नाम सहारनपुर रखा । अकवर की जैन-धर्म में मुद्राएं न केवल मसजिदों बल्कि मन्दिरों तक को
अधिक श्रद्धा जानने के लिये प्राइना-ऐ-अकबरी के भेंट देता था और हिन्दुओं को भी बड़े बड़े पदों पर
तीसरे भाग का 5 वां अध्याय देखिये जिसका हिन्दी नियुक्त कर रखा था। जैन नग्न साधु इसके
अनुवाद जैन सन्देश के शोधांक दिनांक 10 अक्टूबर राज्य में बिना रोक-टोक विहार करते थे 46 । दि०
1963 के प० 218 से 233 देखिये। जैनाचार्य विशाल कीति का शेरशाह सूरि बड़ा सम्मान करता था। इस के राज्य काल में भी 11-जहांगीर (1605-1627 ई०) को जैन अनेक तीर्थकरों की मूर्तियां निर्मित, प्रतिष्ठित और साधुओं पर बड़ी श्रद्धा थी। वह अपनी राज्य मन्दिरों में विराजमान हुई ।
सभा में उनका बड़ा सम्मान करता था56 जिनके
प्रभाव से उसने जैन धर्म की प्रभावना के अनेक .. 10. अकबर महान (1556-1605 ई०) पर फरमान जारी किये। जैन प्राचार्य जिनसेन जैन साधुओं का बड़ा प्रभाव था। सुप्रसिद्ध इतिहास को युग प्रधान की उपाधि प्रदान की । 2-92
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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