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कल्प" इन्हीं के राज्य-काल में रचा 24 | और इनको शाह (1421-1430 ई०) का राज्य मन्त्री साह जैन प्रभावना के अनेक फरमान दिये। जैनाचार्य हेमराज जैन धर्मी था जिस ने सम्राट की आज्ञा से प्रभाचन्द्र का भी मोहम्मद शाह तुगलक पर बड़ा एक भव्य जैन मन्दिर बनवाया और अनेक तीर्थप्रभाव था । इन्होंने भी इस के राज्य-काल में अनेक करों की जैन मूर्तियां प्रतिष्ठित कराकर उसमें बढ़ी महान प्रभावशाली जैन ग्रंथ रचे 26 | फिरोजशाह धूमधाम से विराजमान कराई। तथा समस्त 24 तुगलक (1351 - 1388 ई०) ने दिगम्बर जैन तीर्थंकरों के प्रतिविम्ब युक्त पाषाणपट्ट निर्माण साधुअों के तप-त्याग, ज्ञान तथा आचरण की कराये । हस्तिनापुर आदि अनेक तीर्थ यात्राओं के प्रसिद्धि सुनकर उन्हें न केवल अपनी राज्य-सभा में आज्ञा-पत्र जारी किये । जैन मुनि यशः कीर्ति आदि बल्कि अपने राजमहल में सादर बुलाया। इसकी ने स्थान-स्थान पर विहार कर के जैन धर्म का प्रचार बेगम ने भी जैन मुनि के दर्शन किये27 । देश, काल किया । पाण्डव पुराण आदि अनेक महान जैन और क्षेत्र का विचार करते हुये जैनाचार्य ने अपने ग्रन्थों की रचना और प्राचीन जैन मन्दिरों का एक शिष्य को लंगोटी लगाकर राज्य सभा में जाने जीर्णोद्धार समस्त भारतवर्ष में हुमा । का प्रादेश दिया और स्वयं तपस्यार्थ निर्जन बन में
6. लोधी वंश के सुप्रसिद्ध सम्राट बहलोल चले गये । इस प्रकार वह पहला भट्टारक हुवा ।
लोधी (1451-1489 ई०) पर दि० जैन आचार्य उसने इस का प्रायश्चित लिया फिर भी उस समय
जिनचन्द्र (1450-1518 ई०) का बड़ा प्रभाव से भट्टारकों की एक नयी सम्प्रदाय प्रचलित हो गई28 । हालांकि वे सदा जैन धर्म की प्रभावना
था जिन्होंने इसके राज्य-काल में अनेक तीर्थकरों और जैन सिद्धान्तों का पालन करते रहे। मो०
की प्रतिमायें तथा समस्त 24 तीर्थकरों की मूर्तियों शाह तुगलक (1388-1394 ई०) पर भी जैना..
के पट निर्माण कराकर अनेक जैन मन्दिरों में
विराजमान कराये35 । सिकन्दर लोधी पर दि. चार्य जिन प्रभसूरि का बड़ा प्रभाव था। उन के
जैन प्राचार्य प्रभाचन्द्र का बड़ा प्रभाव था36 जिस राज्य-कोष में भ० महावीर की मूर्ति थी30 । वह
के कारण इनके राज्यकाल में 24 तीर्थकरों की उसने प्राचार्य महाराज को भेंट की। इस विचार से कि सूरि जी महाराज को दूर से पैदल आने में
मूर्तियां प्रतिष्ठित होकर जैन मन्दिरों में स्थापित
हई और जैन धर्म प्रभावना के अनेक कार्य हए । कष्ट होता होगा सम्राट मो० शाह ने अपने महल
दि० जैनाचार्य विशाल-कीर्ति का सिकन्दर लोधी ने के निकट सरकारी खर्चे से जैनियों के लिए भट्टारक
बड़ा सम्मान किया। नग्न जैन38 साधु बिना किसी सराय नाम बस्ती बनवा कर तथा राज्य-भार पर
रोक-टोक के इन के राज्य में विहार करते थे। ही जैन मन्दिर निर्माण करा कर भ० महावीर की
सम्राट के हृदय पर जैन साधुओं के ज्ञान, तप और वह मूर्ति जो राज्य-कोष में थी विनयपूर्वक उस
आचरण का बड़ा प्रभाव था । इब्राहीम लोधी मन्दिर में विराजमान करा दी1 तुगलक राज्य में
(1517-1526 ई०) के राज्य काल में अनेक तीर्थअनेक तीर्थकरों की प्रतिमायें निर्मित और
करों की मूर्तियाँ जैन मन्दिरों में स्थापित हुई। प्रतिष्ठित होकर विशाल पंच कल्याणक उत्सव
चौधरी टोडरमल ने 1518 ई० में महापुराण सहित जैन मन्दिरों में विराजमान होती रही 32 ।
लिखा। वास्तव में तुगलक राज्य में जैन धर्म को बहुत अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी331
7. बाबर (1526-1530 ई०) जैन कवि
महाचन्द्र का बड़ा सम्मान करता था। बाबर के 5. सैयद वंश के सुप्रसिद्ध सम्राट् मुबारिक नगर सेठ साहु, साधारण जैन थे जिन्होंने बाबर से महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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