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इस काल में रथयुद्ध, पदातियुद्ध, मल्ल- समाज में ऊचे आदर्शों के बीच स्थान न मिलने पर युद्ध, दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध, प्रभृति विविध प्रकार भी गान्धर्व व राक्षस विधि का प्रसार था ।13 अन्य के युद्धों के उदाहरण मिलते हैं। युद्ध में प्रमुखतः विवाहों में वाग्दान से, भविष्यवाणी से, साटे से हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल सैनिक, बैल, गान्धर्व और विवाह,14 विधवा-विवाह15 एवं विधुर-विवाह आदि नर्तकी ये सात अंग होते थे। व्यूहों में क्रोच गरुड भी प्रचलित थे। समाज में वहुपत्नी प्रथा16 प्रचलित चक्रादि के उल्लेख प्राप्त होते हैं। असि, उलखल, थी। मातुल कन्या से विवाह सम्भव था ।17 चारुदत्त कायत्राण, कामक, कौमुदगदा, खंग, खुर, गदा, का विवाह उसके मामा की लड़की से किया गया था। गाण्डिव, चक्र, जानु, तल, तोमर, त्रिशुल, दण्ड, 21 38 अर्जुन और सुभद्रा का सम्बन्ध भी ऐसा वाणादि अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्र थे। कतिपय ही था । विवाह दो विकसित व्यक्तियों का सम्बन्ध शस्त्रास्त्रों में अदभुत चमत्कृतिपूर्ण अलौकिक शक्ति था । कन्यायें पिता के घर में ही युवा हो जाया भी विद्यमान थी। गज, बोडे, रथ, ऊंट, खच्चर करती थीं। दहेज प्रथा का भी उल्लेख है। यद्यपि आदि भी युद्ध की सवारियां थीं। राजमहिषियाँ स्पष्ट रूप से 'दहेज' शब्द का न नाम आता है भी रण-कौशल में निष्णात होती थी और आव- और न उसकी मांग की जाती है । खुशी से लड़की श्यकता पड़ने पर युद्ध भी करती थीं। कभी कभी वाला लड़के को यथाशक्ति और यथेच्छ कुछ दे अपने पतियों की सहायतार्थ भी युद्ध में साथ-साथ देता था। जाती थीं।10
इस समय स्त्री जाति का समाज में कोई सामाजिक जीवन
स्वतन्त्र स्थान नहीं था । स्त्रियां पुरुषों की इच्छा हरिवंशपुराण में एक संगठित समाज का स्व
के अनुसार उसके उपभोग के उपकरण मात्र थीं। रूप मिलता है। समाज में चारों वर्णों (बाह्मण,
स्त्रियों को चल सम्पत्ति के रूप में भी माना
जाता था। क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) की स्थिति ज्ञात होती है पर उनके घेरे कठिन नहीं थे । चारों वर्गों के अति- हरिवंशकालीन व्यक्ति का जीवन सभ्य और रिक्त भी समाज में व्यावसायिक और प्रौद्योगिक सुसज्जित था। वह विविध परिधानों द्वारा शरीर वर्ग थे, इनमें राजक, चाण्डाल, चर्मकार, स्वर्ण- का अलंकरण करता था। उसके वस्त्रों में वासस्, कार, दारूशिल्पी आदि प्रमुख हैं।
उपवासस्, नीवि,कम्बल आदि प्रमुख थे ।18 प्राभूषणों प्राचीनकाल से ही विवाह जीवन की सर्वोत्कृष्ट
में मुकुट,19 कुण्डल,केयूर, चूड़ामणि, कटक, कंकण,
मुद्रिका, हार, मेखला, कटिसूत्र, कंठक, रत्नावली, घटना मानी जाती है । उसका इस काल में ह्रास
नूपुर, आदि का प्रचलन था (8/26 । प्रसाधन देखने को मिलता है । विवाह अव दैविक विधान न
सामग्री भी अनेक विध थीं। साधारण से लेकर रहकर, योग्यता, पराक्रम और शक्ति का मापदण्ड
बहुमूल्य सामग्रियाँ व्यवहृत होती थीं। चन्दन, रह गया था। इस काल में स्मृतियों में प्रतिपादित
कु कुम, अंगराग, पालक्तक, अंजन, शतपाक, तेल, अाठ प्रकार के विवाहों में से अन्य विवाहों के प्रकार गंध आदि अनेक सुगन्धित द्रव्य मिश्रित लेप सिंदुर, (प्रासुर, गान्धर्व, राक्षस और पैशाच) को निन्द
कस्तुरी, माला, ताम्बूल आदि के प्रयोग का उल्लेख नीय या परित्याज्य माना जाता था।12
मिलता है (8वां सर्ग) । वृद्धायें प्रायः त्रिपुण्डाकार इस काल में उक्त पाठ विवाह विधियों में से तिलक लगाती थी। (22-47) कोई भी एक विशुद्ध रूप से प्रचलित नहीं थी। समाज में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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