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तीको बेटो छाजू साह घटावली सू विसर कियो उठकर घटाली आना लिखा है । उस समय उनके ती पाछै महाराजाधिराज श्री मानसिंहजी बुलाया पिता छाजू साह जीवित थे जिनको 1656 में तहि महाराजजी से मिल्या ती परि म्हेंला कोट मान सिह जी ने बुलाया। अमै रामजी हीरानन्दजी को चोक कस्बा चाकसू को काढ़ी कोटड़ी बंधाय चीत्तौड़ आए तब से लेकर घटाली या घटावली वास करायो और जमीन इनाम में दीघा 500 पाने तक का समय 295 वर्ष होता है । उहडणजी बक्सी, अर यो मुरातिब बकस्यो, जो थांने वा थांकी से रायमल तक नौ पीढ़ियां होती हैं जिनका औसत वस्ती का ने वाछ विराड फरो माफ कीयो फरो 33 वर्ष प्रति पीढ़ी आता है जो अधिक नहीं है । नहीं साबक माफ, पर थाँकी कोटड़ी खूनी अगर अभै राम हीरानन्द के पश्चात् और उहडण (कोणे?) तक सीदी आ जावे । तीने राज ल्यासी के बीच एक दो पीढियां और गायब हों तो यह नहीं, कस्बा चाकसू में इन्साफ होसी सो थांकी औसत और भी कम हो जायगा। वंशावली में कोटड़ी होसी, अर परगना का गांवा का होली रायमल के पोतों के पश्चात् उसके वंश का कुछ दसेरा की भेंट साहजी की करता रहसी ।। पता नहीं चलता । शायद यह वंश घटावली में ही
रहता रहा या समाप्त हो गया । इसमें सम्वत् से पूर्व विक्रम नहीं लिखा है और यदि यह पता चल जावे कि ये कौन से संवत् हैं चौहानों का राज्य प्रारंभ में नागौर में था। तो आसानी से इसकी ऐतिहासिकता की जांच की वहां से शाकम्भरी (साँभर) और शाकम्भरी से जा सकती है। मानसिंहजी वाला संवत् 1656 अजमेर आया । विक्रमी है जो सही है क्योंकि संवत् 1647 से 1672 विक्रमी तदनुसार सन् 1590 से 1615 खण्डेला वर्तमान में शेखावाटी में है । इतिहासईस्वी महाराजा मानसिंहजी का समय जयपुर के कारों के अनुसार इस हिस्से में पहले सांभर के इतिहास से सिद्ध है। ये सम्राट अकबर के काल और फिर अजमेर के चौहानों की शाखामों का में हुए हैं तथा इतिहास प्रसिद्ध हैं ।1
राज्य रहा है। अजमेर बसने का काल विक्रम की
सातवीं शताब्दी है। हर्ष संवत् और विक्रमी संवत् में 662 वर्ष का अन्तर इतिहासकार मानते हैं । रावल रतन सिंह अब प्रश्न है कि प्राचार्य जिनसेन ने यदि चौतोड़ का काल 1359 विक्रमी (697 हर्ष खण्डेलवाल जाति की स्थापाना की तो कौन से संवत्) है । खण्डेला टूटने का संवत् 782 जो छपा संवत् में ? जिनसेन ने अपने गुरु वीरसेन द्वारा है वह मुद्रण की या रेकार्ड से प्रतिलिपि की भूल अधूरी छोड़ी हुई जयधवला टीका को शक संवत् शात होती है । यह संवत् 682 होगा जिसका 759 वि. सं. 894 में पूर्ण की। इसके पश्चात् विक्रम संवत् 1344 होता है। 15 साल गिरनार उन्होंने महापुराण की रचना प्रारम्भ की। जैसा जी की यात्रा में लगे होंगे क्योंकि उस समय बैल- कि अनुमान किया जाता है प्रादि पुराण को पूर्ण गाड़ियों में यात्रा होती थी। इतना समय यात्रा करने में उन्हें 4-5 वर्ष का समय लगा हो तो वे में लगना अधिक नहीं है । अर्थात् विक्रम संवत् संवत् 899-900 तक अवश्य जीवित रहे थे। 1344 तक साह परिवार खण्डेले में रहा । वंशा- इसके आगे वे कहां गये, कब उनकी मृत्यु हुई बली के अनुसार रायमल छाजू साह के पुत्र थे आदि प्रश्नों पर इतिहास की पुस्तकें जो अब तक जिनका संवत् 992 (1654 वि०) में चीतोड़ से लिखी गई हैं, मौन हैं । किन्तु हमारी उक्त संवत्
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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