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14 येकस महावीरजी सू बरस 490 विक्रम सीतांवर घणा दिन ताई वन मै ले जाइ प्रहार सु संवत् 2 प्रथम गोत्र साहै ॥ बंस सोम कुल कीयो पाछै भद्रभावजी दुरसीस दीनी ..........।' चौहाण उतन खंडेलगिर कुलदेव्या चक्रेश्वरी ।।१।। दुमरो गौत्र विक्रम सू संवत 3 गोत्र भाव- इतना ही अश यहां दिया जा रहा है। प्रागे सौ वंस सोम कुल चोहाण उतन भावसौ लेख के विस्तार भय से यहां नहीं दे रहे हैं । राज्ये श्री भावस्यंघ जी कुलदेव्या चक्रे सुरी ॥2॥ इसके संवत् प्रादि यद्यो गलत मालूम देते हैं
किन्तु निम्न बातें सष्ट हैं। इस तरह आगे भी विक्रम संवत् 6 तक 1. खण्डेल में खंडेलगिर नामका चौहान राजा
था। 14 गोत्र बताने के पश्चात् मागे लिखा है
2. उस समय वहां विदेशियों का दिखल (कब्जा) 'इ तरह जिनसेनजी या नै जैनी कीय्या ।। हो गया था। प्राग छ उतपत्ति जसोभद्र जी के बार सर्व एक छा। 3. चौहानों को जैनी आदिपराण के कर्ता जिनसो जसोभद्र जी जैन धरम को विदमारण जाणि सरब
सेनजी ने बनाया था। सिद्धि जति जना मै कही जो खंडेले उतपात
हमारे सामने जयपुर के साह परिवार वालों हवो सो अब कोई जावो तब सगला कही ज त्या
की एक छपी हुई वंशावली है जिसमें इस प्रकार न श्री गुर आप पाग्या दे सो जाव सो श्री गुर
लिखा है-- आग्या तो और ही न करी छी ।। पर जिनसेनजी उनमत थको होय कही जो खडेल ह जास्यौं । तब पुराने सरकारी रेकार्ड के आधार पर सबल पण आग्या बिना ही गमन कीयो ।। तदि खेडेले (खंडेले ?) जैनी हुग्रा ती को अहवाल सिखि छा त्या बोचारी जो उनमत होय करि गयौ संवत् 110 के साल खंडेलेगिर चौहाण जैनी हुमा सो जिनसेनजी खडेलं जाइ अर खडेलवाल म्हाजन जिनसेनाचार्यजी का उपदेश सू, राजा को गोत छा सरेष्ठी त्या मै प्राय वाकी रख्या करी ।। अर साह कहायो पाछे सम्वत् 782 की साल खंडेलो राजा खंडेलगीर की गोली मेटी ।। सो खडेलगिर छुट्यो, अभैरामजी हीरानन्द जी जात्रा गिरनारजी आदि भाइ 14 तो जैती कीय्या ।। तैठा पाछै जिन- रिखबदेवजी की कर चीतोड रावल रतनसीजी सू सेनजी काल वास हवा तैठा पाछै गोत्र नत्र धौ मिल्या, गांव इजारे कीयां पाछै सम्वत् 992 के खंडेल गिर आदि भाई चौदा तो जैनी कीय्या गोत साल ऊठां सू रायमलजी ऊठ्या, सो घटाली बांध्यौ ।। पाछै बाकी गो औरा औरा प्राचार्या पाया, कीलणदी वालणदेव सोलखी घंटाली का प्रतिवोध्या गोत्र 84 परजति खंडेला का गावयु ठाकूर त्यासू गांव इजारे लिया सो सं 1656 की श्रावका मटारक आपणा कीय्या ॥ जसोभद्र जी साल छाज साह जी घटाली सूचाटसू पाया, पर पाछै जिनसेनजी ही गाव मै रह्या। जसोभद्र जी राजा मानसिंहजी सूमिल्या । ताइतो वनवासी छा पाछै भद्रभावजी पाट बैठ्या ‘सगला जत्यां प्राग्या मानी पर प्राइ नम्पा परिण पुराने रेकार्ड के आधार पर जिनसेनजी पाग्या तो मानी पणि हजुरी न प्रथम साह उहडणजी तींको बेटो दूल्हजी गग्या ।। तैठा सुगछ विरोध ह्वता गम्या ।। पण तीको बेटो लाखो, तीकों बेटो खींवसी तीको भद्रभावजी ताई भी वनबासी रह्या ।। पर काल्हाजी तींको बेटो सरवण तीको बेटो बोपतजी
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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