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लेखक इतिहास का विद्वान् नहीं हैं। अपने सीमित ज्ञान और साधनों के बल पर उसने इसे बहुत कम समय में तैयार किया है । लेखक खण्डेलवाल है और अपनी जाति के इतिहास से परिचित होने की उसकी स्वाभाविक इच्छा है। लेखक की दृष्टि में खण्डेलवालों से सम्बन्धित ऐसी सामग्री है जिसका प्रयोग करके 20X30/8 के आकार के कम से कम 2000 पृष्ठों का इतिहास तो तैयार किया ही जा सकता है लेकिन सहयोग और प्रेरणा शर्त है । जयपुर के कई मन्दिरों में पैसा है और ऐसे क्षेत्रों के कार्यालय हैं जो खण्डेलवालों के हाथ में हैं, जिनकी लाखों रुपया वार्षिक की प्राय है, लेकिन वे या तो मन्दिरों में सोना मढवाते हैं या अनावश्यक इमारतें बनाते हैं । ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए उनके पास पैसा नहीं है । वे या तो इसका महत्व नहीं जानते या उन्हें प्रापसी झगड़ों से ही फुरसत नहीं है। प्रस्तु, विद्वानों से हमारा निवेदन है कि वे लेखक का त्रुटियों की ओर ध्यान दिलावें । एतदर्थ उनका प्राभार और सुझावों का स्वागत होगा इसी पवित्र भावना के साथ
-पोल्याका
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खण्डेलवाल श्रावकों की उत्पत्ति
* भंवरलाल पोल्याका, जैनदर्शनाचार्य, साहित्य शास्त्री,
जयपुर। खण्डेलवाल श्रावक जिन्हें 'सरावगी' के नाम कोई प्रयत्न नहीं किया गया। जाति के इतिहास से भी अभिहित किया जाता है, जैनों की एक बहुत का अपना एक महत्व है। वह घटनाओं द्वारा महत्वपूर्ण जाति है, न केवल संख्या की दृष्टि से हमारे में हेयोपादेय का भेदविज्ञान जागृत करता ही इसका महत्व है अपितु, बड़े बड़े त्यागी तपस्वी है । जैनों की अन्य जातियों ने अपने अपने छोटे श्रीमान् धीमान इस जाति में हुए हैं और वर्तमान बड़े इतिहास प्रकाशित किए हैं किन्तु खण्डेलवाल में हैं। राजनीतिज्ञों में भी संख्या की दृष्टि से श्रावक जाति का इस प्रोर कभी कोई प्रयत्न या इसका प्रतिशत अधिकतर ही निकलेगा। खेद है तो हुग्रा ही नहीं या हुआ तो सम्वत् प्रादि का कि ऐसी जाति के इतिहास लेखन का आज तक घटना विशेष से तारतम्य न बैठने के कारण उसे
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