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प्रादमी
कल्पवृक्षों की छांहों तले, सुख के उपहार बंटते रहे, लक्ष्य से होन-गंतव्य पर, कल्प के कल्प कटते रहे, काल का चक्र रुकने लगा, युग के पौरुष ने अंगड़ाई ली, देवता बन गया प्रादमी, और दानव हुमा प्रादमी,
__एक रोता हुआ आदमी, एक गाता हुआ आदमी।
जन्म से मत्यु के द्वार तक, कर्म करता हुआ आदमी, जिन्दगी के सुबह-शाम में, रंग भरता हुआ प्रादमी, संस्कृति के सुमेरू गढ़े, मंच से वेद का पाठ है, एक पढ़ता हुआ आदमी, एक सुनता हुमा प्रादमी,
एक रोता हुआ आदमी, एक गाता हुआ आदमी।
गांव के गांव दुख के चले, सुख के संयोजनों के लिये, जिस डगर पर बढ़े थे चरण, उस डगर के बुझे थे दिये, मन का चिन्तन बहुत भीरू था, कल्पना के महल गढ़ लिये, सुख में जीता हुआ आदमी, दर्द पीता हुमा प्रादमी,
___ एक रोता हुआ पादमी, एक गाता हुआ आदमी।
वर्ग में बंट गया आदमी, जाति में कट गया प्रादमी, शब्द सा बन गया प्रादमी, अर्थ सा छन गया प्रादमी, प्रादमी के इसी ज्ञान के, सर्ग के सर्ग खुवते रहे, एक शासक हुअा अादमी, एक शासित हुया प्रादमी,
___एक रोता हुआ आदमी, एक गाता हुआ आदमी। पोस्ट प्रॉफिस रोड,
श्री मगनलाल 'कमल' गुना (म.प्र.)
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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