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:: प्रभु से विनम्र प्रश्न :
.श्री मंगल जैन 'प्रेमी'
३१६, हनुमानताल, जबलपुर ज्ञान की लहर, अज्ञान के तट, थककर, तुम्हारा पथ पूछती है.
हर दिशा में, भुजायें बढ़ाते रहे, सोये देव, बेमतलब जगाते रहे, अहं को नाव पर, बहे जा रहे, वेदना को यू ही, सहे जा रहे. अंजली भर चुकी है, प्रांसुओं से, प्रांख ये तेरा, तथ पूछती है ॥
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भारती को सजाया, हर थाल में, प्रार्थना को गाया, हर ताल में, पीत वसनों को, सदा पहनता रहा, अभिषेक नीलामी करता रहा. साधना भावों में बिककर हा, अाराधना तेरा, विगत पूछती है।
ज्योति वसन, नहिं मन पर है, युवा साधना, नहिं तन पर है, स्नेह बूद में, कहां चेतना, कहते हो ये है, सुजन वेदना. मुस्कराते हुये, गुनगुनाते हयेप्रात्मा तुम्हारा अथ पूछती है ॥
ज्ञान की धारा अज्ञान के तट, थककर, तुम्हारा पथ पूछती है ।।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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