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रहे । बाद में गर्वभाव छोडकर उन्होंने नन्द से कहा महं उप्परि दीसहिं अधिरचित्त ।। कि इस जन्म में आप मेरे तात हैं। मैं यशोदा कवि भणइ दहिउ-मंथंतियाइ । माता को एक क्षण के लिए नहीं भूल सकता, तुहुं महुं धरियउ उन्भंतियाई ।। जिन्होंने अपने स्तनों का दूध पिलाकर मुझे पाला । लवणीय लित्त करु तुझ लग्गु । कुछ दिनों के लिए आपलोग चले जोयें, तब तक कवि भणइ पलोयइ मझु मग्गु ।। मैं प्रतिपक्षियों का कुलक्षय कर लू।
तुहं रिण सिणारायण सुयहि णाहिं ।
प्रालिंगिउ अवरहिं गोवियाहिं ।। कृष्ण की इस कृतज्ञता की अनुध्वनि 'सूर
सो सुयरहिं कि रण पउण्णबंछ । सागर' में भी सुनाई पडती है, जब वे उद्धव से सन्देश ले जाने की बात कहते हैं :
संकेय कुडण्गुड्डीरण-रिछ ।।
पत्ता-कावि भणइ वासंतु । ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं ।
उद्धरिवि खीर भिंगारउ ।। प्रात समय माता जसुमति अरु ।
कि बीसरियउ अज्जु । नन्द देखि सुख पावत ॥
जं मई सित भडारउ ।। माखन रोटी देही सजायौ । अति हित साथ खबावत ॥ अर्थात्, हे प्रभु, तुमने कुछ दिनों तक रतिक्रीडा अनगन भांति करी बहुलीला । के निमित्त हम गोपियों को अपने पास बुलाया था। जसुदा नन्द निबाहीं ॥ हे माधव तुमने यमुना किनारे हमारे कटिवस्त्रों का
अपहरण किया था और अब मथुरा की स्त्रियों पर । पुष्पदन्त ने बाल-लीलाओं का ही प्रत्यक्ष वर्णन तुम अनुरक्त हो, हमसे तुम्हारा मन विरक्त हो किया है, किन्तु यौवन-लीलाओं का जान-बूझकर गया है। कोई कहती है: मैंने दही मथते तुम्हें पकड वर्णन नहीं किया है। पुष्पदन्त कृष्ण की बाल- लिया था और मक्खन से लिपटा तुम्हारा हाथ मुझे लीलाओं के बाद की शृगार-लीलाओं के वर्णन के लग गया था। कोई कहती है : तुम मेरा मार्ग विषय में स्पष्टतया मुखर नहीं है। लेकिन, उन्हें देखो, रात तुम सो नहीं सके; क्योंकि दूसरी
गार-लीलाओं की जानकारी नहीं थी, ऐसी गोपियों ने तम्हारा ग्रालिंगन किया है। तम्हारा बात नहीं है । ऊपर कहा गया है कृष्ण गोपीजनों रतिसूख से मन नहीं भरा और तम संकेत-निटप की बातें सुनकर कुछ मुस्कराते रहे (दर हसंतु)। के पास जाने को उत्सुक हो। कोई कहती है : वास्तव में पुष्पदन्त ने इन बातों के ब्याज से बड़ी क्या तुम भूल गये, जब मैंने तम्हें दुध की भारी से कुशलतापूर्वक संयोग-लीलाओं का आभास दे दिया भिगो दिया था। है। मथुरा-प्रवास के समय ही कुछ दिनों तक कृष्ण के साथ रति क्रीड़ा करने वाली गोपियां उनसे सोपालम्भ
कहना अनपेक्षित न होगा कि सूर ने भी अपनी
कृष्ण शृगार-लीला के वर्णन-क्रम में उक्त प्रकार कहती हैं :
के भाव परिप्रेक्ष्य में अनेक रसमय प्रसंगों की कइवइ दियहहिं रइकीलरीहि । अवतारणा की है। हालांकि, पुष्पदन्त के भावबोल्लाविउ पइ गोवालिणीहि ।। विनियोग से सूरदास की भावपंगुत्तउ पइ माधव सुहिल्लु । तन्मयता का विन्यास अधिक मर्मबेधक बन पड़ा है, कालिंदी तीरि मेरउं कडिल्लु ।। जो पुष्पदन्त का ही बीजरूप रसमाधुरी की परंपरा एवहिं महुरा-कासिरिणहि रत्त । का चरमोत्कर्ष है।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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