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दिया है। उनके कथ्य में तत्कालीन लोक-विश्वास पात्र में अपनी परछाई देखकर कृष्ण उसे बुलाते की अनुध्वनि मुखर है। उनके अनुसार, बालक हैं । यह देख नन्द और यशोदा आपस में हंसते हैं को लेकर यमुना पार करते ही बलराम को नन्द और कृष्ण को अपनी छाती से लगा लेते हैं : मिलते हैं । नन्द की गोद में नवजात कन्या है । पूछने पर वे बताते हैं कि उनकी पत्नी यशोदा के
घय भायरिण अवलोइवि भावइ । - द्वारा पुत्र की प्राप्ति के लिए देवी की मनौती
णिय पडिबिंबु बिठ्ठ बोल्लावइ ।। मानने के बावजूद पुत्री उत्पन्न हुई। इसलिए, वे
हसइ णंदु लेप्पिणु अवरुण्डइ । उसे वापस करने के लिए देवी के निकट जा रहे हैं।
तहु उरयलु परमेसर मंडइ ।। बलराम अवसर का लाभ उठाकर नन्द से कहते इसी काव्य-प्रसंग को सूरदास की कारुकारिता हैं-'लो यह पुत्र । देवी ने तुम्हारे लिए ही भेजा के सन्दर्भ में देखिए । बाल-लीला का कितना है और अपनी पुत्री मुझे दे दो।' बलराम लड़की मनोहारी रूप है ! सूर की पंक्तियां हैं : को लेकर लौट जाते हैं। यहां भी लड़की कंस को सौंप दी जाती है। कंस उसके नाक-कान कटवाकर
माखन खात हंसत किलकत । उसे तलघर में डलवा देता है। कन्या बाद में
हरि स्वच्छ घट देख्यो । भिक्षुणी बन जाती है लेकिन वह कृष्ण जन्म के
निज प्रतिबिंब निरखि रिस । सम्बन्ध में आकाशवाणी नहीं करती। हालांकि मानत जानत प्रान परेख्यों ।। 'सूरसागर' में जैसे ही कंस कन्या को पत्थर पर पटकना चाहता है, वैसे ही कन्या उसके हाथ से
कृष्ण की देवी लीलाओं में उनका अलौकिक छूटकर आकाश में उड़ जाती है और कृष्ण जन्म की
व्यक्तित्व उभरकर सामने आता है। 'सूरसागर' में सूचना देती है । 'महापुराण' के अनुसार, कंस को
कंस को कृष्ण जन्म की सूचना योग कन्या से ही बहुत बाद में वरुण ज्योतिषी से कृष्ण जन्म का
मिल जाती है, अतएव वह प्रारम्भ से ही कृष्ण को पता चलता है । निस्सन्देह, ‘महापुराण' और
विविध प्रकार से उपद्रत करता है । परन्तु 'सूरसागर' में कृष्ण जन्म की अलौकिक पृष्ठभूमि
'महापुराण' के कंस को कृष्ण जन्म की सूचना तब और परिस्थितियां समान रूप से वणित हैं, किन्तु
मिलती है, जब कृष्ण का पुण्य-प्रताप परवान चढ़ उसके कारणों में पर्याप्त भिन्नता है।
चुका होता है। कंस के दुःस्वप्न देखने के बाद
ज्योतिषी वरुण उसे स्वप्नफल बताने के क्रम में 'महापुराण' में कृष्ण की बाल-लीलानों को कृष्ण जन्म की सूचना देता है। कंस पूतना को मानवी और दैवी इन दो रूपों में विभक्त किया कृष्णवध के लिए भेजता है, परन्तु कृष्ण ही पुतना गया है। मानवी लीलाओं में धूलिधसर बालक का के रक्त-माँस चूस लेते हैं । उसके बाद एक देवी गोपियों के हृदय चराना, मथानी पकडना और शकटासुर का रूप धरकर पाती है और कृष्ण से मथानी को तोड़ देना, अधबिलोया दही बिखेर पराजित होकर भाग खडी होती है। यशोदा ऊखल देना, गोपियों का कृष्ण को पकड़ना और मथानी से कृष्ण को बांधकर यमुना किनारे चली जाती तोड़ने के बदले में आलिंगन मांगना या दिन-भरके है। बालक कृष्ण उनके पीछे लगता है। इसी लिए प्रांगन की कैद दे देना ग्रादि हैं।
बीच एक राक्षस कृष्ण पर पेड़ उखाड़कर फेंकता
हैं, जो उनकी भुजानों से टकराकर चूर-चूर हो बाल-लीला का एक रोचक प्रसंग है । घी के जाता है । इसी प्रकार, एक गर्दभी और अश्व
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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