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25. तत्त्वार्थसूत्र 5-2
27. वही 5 - 36 या 38
29. वही; 5-1
31. वही 5 - 8,9,10,11
33. सभाष्य तत्त्वार्थसूत्र पृ० 247
35. 5-6 का भाष्य
37. प्रशमरति प्रकरण कारिकाः
2-8
207 व 210 1
39. तत्त्वार्थसूत्र 4 - 14 का भाष्य । 41. तत्त्वार्थसूत्र 96 का भाप्य
26. वही 5-3 28.5-39
30 तत्त्वार्थ सूत्र 5 / 6-7 32. वही 5-11
34. 5-5 का भाष्य
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36.5 -38 का भाष्य ।
38. तत्त्वार्थसूत्र 2 - 1 प्रशमरतिप्रकरण 196 व 197
40. प्रशमरति 172
42. प्रशमरतिप्रकरण: कारिका 5-7
कीमती घोड़ा
राजा ने एक बड़ी रकम देकर उस घोड़े को खरीद कर अस्तबल में भेज दिया पर घोड़े में एक बहुत बड़ी एब थी । वह सदा मनमानी करता था । यदि उस पर कोई बैठता तो बजाय चलने के वह वहीं बैठ जाता या फिर ऐसा भागता कि जंगल में जाकर ही रुकता । खाने के लिये भी उसे अच्छी हरी हरी घास चाहिये थी तथा दिन रात उसे खिलाना चालू रखते तो पूरे समय खाया ही करता । जानकार को जब घोड़े की एव बाबत बतलाया गया तो उसने कहा - इसे लगाम लगाइये तथा अस्तबल से निकाल कर थोड़े समय बाजार में घुमाइये । जानकार के कहे अनुसार करने पर थोड़े दिन में घोड़ा सुघर गया ।
घोड़ा आज भी मनमानी । जानकार उत्तमपुरुष
हमने भी त्याग तपस्या कर मानव जन्म पाया पर हमारा मन रूपी करता है | खाना पीना तथा पांचों इन्द्रियों के विषयों में रचापचा रहता है कहते हैं कि इस मन रूपी घोड़े को त्याग एवं संयम की लगाम लगाइये नहीं तो यह जंगल में जाकर पटक देगा । त्याग एवं संयम के साथ धर्म स्थान पर जाकर स्वाध्याय में मन लगाया तो जीवन उन्नत होने में देर न लगेगी
★ श्री मोतीलाल सुराना इन्दौर |
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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