________________
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के होने पर भी चारित्र कभी होता है कभी नहीं किन्तु चारित्र के होने पर सम्यग्दर्शन और ज्ञान का लाभ सिद्ध ही है । इस बात को प्रशमरतिप्रकरण तथा भाष्य में लगभग एक से शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है । प्रशमरति—पूर्वद्वयसम्पद्यपि तेषां भजनीयमुत्तरं भवति ।
पूर्वद्वयलाभः पुनरुत्तरलाभे भवति सिद्धः ॥15 तत्त्वार्थभाष्य-एषां च पूर्वलाभे भजनीयमुत्तरम् । उत्तरलाभे तु नियतः पूर्वलाभः ।।
प्रशमरति में शिक्षा, पागम, उपदेशश्रवण अधिगम के तथा स्वभाव और परिणाम निसर्ग के पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं।
शिक्षागमोपदेशश्रवणान्येकार्थकान्यधिगमस्य ।
एकार्थः परिणामो भवति निसर्ग: स्वभावश्च ।।17 भाष्य में भी ये ही पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं
आगमः अभिगमः आगमो निमित्त श्रवणं शिक्षा उपदेश इत्यनान्तरम् । ....."निसर्गः परिणामः स्वभावः अपरोपदेशः इत्यनर्थान्तरम् ।
तत्त्वार्थसूत्र में मतिज्ञान के पर्यायवाची शब्दों में अभिनिबोध को उल्लिखित किया है ।19 प्रशमरति में भी मतिज्ञान को अभिनिबोधक कहा है ।
संसारानुप्रेक्षा का प्रशमरतिप्रकरण का वर्णन भाष्यानुसारी हैमाता भूत्वा दुहिता भगिनी भार्या च भवति संसारे । व्रजति सुतः पितृतां भ्रातृतां पुनः शत्रुतां चैव ।।21 भाष्य----माता हि भूत्वा भगिनी दुहिता माता च भवति ।
भगिनी भूत्वा माता भार्या दुहिता च भवति । इस प्रकार प्रशमरतिप्रकरण का
तत्त्वार्थभाष्य से शाब्दिक साम्य है, जो आपाततः दोनों के कर्ता के ऐक्य की संभावना को जन्म देता है ।
वैषम्यप्रशमरतिप्रकरण तथा सभाष्य तत्त्वार्थसूत्र में महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक अन्तर है ।
(1) द्रव्य संख्या-तत्त्वार्थसूत्रकार मुख्य 5 द्रव्य मानते हैं । काल द्रव्य के स्वतन्त्र अस्तित्व के विषय में वे उदासीन हैं । श्वेताम्बर पाठ 'कालश्चेत्येके ।'23 तो निश्चित रूप से काल के स्वतन्त्र द्रव्यत्व के विषय में सूत्रकार की तटस्थता को घोषित कर रहा है। दिगम्बर पाठ 'कालश्च' के द्वारा भी सूत्रकार की मान्यता का विश्लेषण करें, तो कह सकते हैं कि सूत्रकार इस विषय में तटस्थ थे ।
अजीव द्रव्यों के वर्णन से पाँचवे अध्याय का प्रारम्भ होता है यहाँ प्रथम सूत्र में धर्म, अधर्म, अाकाश और पुद्गल इन चारों को अजीवकाय कहा गया है । यहां काल के कायत्व का अभाव होने से उसका परिग्रहण नहीं किया गया । द्रव्यारिण24 व जीवाश्च25 इन दो सूत्रों के उपरान्त कालद्रव्य का उल्लेख संभव व आवश्यक था, किन्तु यहाँ कालद्रव्य का वर्णन नहीं है। जीवद्रव्य का वर्णन
2-4
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org