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ही प्रथम आचार्य हैं, जिन्होंने संस्कृत सूत्र शैली में जैन तत्त्वज्ञान को पिरोया है । प्रशमरतिप्रकरण भी संस्कृत में संक्षिप्त शैली में रचित है । प्रशमरतिप्रकरण का तत्वार्थसूत्र से कहीं-कहीं शब्दशः साम्य हैं ।
साम्य-
प्रशमरति - प्रकरण की चार कारिकाओं में तत्त्वार्थसूत्र के सूत्र ज्यों के त्यों विद्यमान हैं ।
प्रशमरति----सामान्यं खलु लक्षणमुपयोगो भवति सर्वजीवानाम् । साकारोऽनाकारश्च सोऽष्टभेदश्चतुर्धा तु
तत्त्वार्थ सूत्र - उपयोगो लक्षणम् । 2 स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः । 3 प्रशगरति - उत्पादविगमनित्यत्वलक्षणं यत्तदस्ति सर्वमपि 1
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सदसद्वा भवतीत्यन्यथापितानपि तविशेषात्
तत्त्वार्थसूत्र—सद्द्रव्यलक्षणम् । उत्पादन्ययध्रौव्ययुक्त सत् । तद्भावाव्ययं नित्यम् 1 अर्पितानपि सिद्ध
प्रशमरति - - एतेष्वध्यवसायो योऽर्थेषु विनिश्चयेन तत्त्वमिति ।
सम्यग्दर्शनमेतच्च
तन्निसर्गादधिगमाद्वा 116
तत्त्वार्थसूत्र -- तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । तन्निसर्गादधिगमाद्वा 17 प्रणमरति - एषामुत्तरभेदविषयादिभिर्भवति विस्तराधिगमः । एकादीन्येकस्मिन् भाज्यानि त्वाचतुभ्यः इति ॥ 8 तत्त्वार्थसूत्र - एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्भिन्नाचतुभ्यः 19 प्रशमरति -- सम्यक्त्वज्ञानचारित्र सम्पदः साधनानि मोक्षस्य । तास्वेकतराभावेऽपि मोक्षमार्गोऽप्यसिद्धिकर: 110
तत्त्वार्थसूत्र - सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: (11
प्रशमरतिप्रकरण की उक्त कारिकाओं में तत्वार्थसूत्र के सूत्र के सूत्र ज्यों के त्यों उद्धृत कर लिये गये हैं । उक्त साम्य प्रशमरतिप्रकरण और तत्त्वार्थसूत्र के एककर्तृत्व का आभास देता है ।
יון
प्रशमरतिप्रकरण की भाष्य के साथ भी काफी समानता है । प्रशमरति में उपयोग को द्विविध साकार एवं अनाकार बताया है । 12 तत्वार्थभाष्य में भी ज्ञानोपयोग को साकार व दर्शनोपयोग को अनाकार शब्दों से उल्लिखित किया है । प्रशमरति में कहा गया है सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र में से एक के भी प्रभाव में मोक्षमार्ग प्रसिद्धिकर है ।
तास्वेकतराभावेऽपि मोक्षमार्गोऽप्यसिद्धिकरः । 13
इन्हीं शब्दों का भाष्य में भी प्रयोग है । एकतराभावेऽप्यसाधनानि 114
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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