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ये जीवन एक रैन का सपना
ॐ श्री भगवान् स्वरूप जैन 'जिज्ञासु', आगरा
ये जीवन एक रैन का सपना । कोई नहीं यहां अपना, बन्दे, कोई नहीं यहां अपना ।। ये० ।। जान नहीं पाया तू अब तक झूठी जग की थपना । भूल गया इस मोह में फंसकर, जिनवर नाम का जपना ।। ये०॥
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पल-पल में पर्याय बदलती, ज्यों पल-पल दृग झपना । नस जाते जब जीवन क्षण में, कैसा यहाँ पनपना ।। ये०॥
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कांप रहे भव-जीव कि जैसे कृश काया का कपना। मिथ्या दर्शन-ज्ञान चरित से भव-भव माहिं तड़पना ॥ ये० ॥ सम्यक दर्शन-ज्ञान-चरित हैं हरते जीव-कलपना। शाश्वत सुख-दातार अनूठा सम्यक् तप का तपना ।। ये० ॥
अशुभ त्याग कर शुभ में आना, शुद्ध माहि शुभ खपना। धर्म्य-शुक्ल शुभ ध्यान सहारे, मुक्ति-महल पद चपना ।। ये० ।।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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