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सलिला - ( भोलेपन से ) हमारे यहाँ बर्फी बनी है । पर हमारे यहाँ फूफाजी नहीं प्रायेंगे ।
चन्द्रकुमार - तेरे फूफाजी नहीं है ?
सलिला - माँ कहती है बुधाजी का विवाह होगा । फूफाजी घोड़े पर चढ़कर मायेंगे और बुना को डोली में बैठाकर ले जायेंगे ।
चन्द्रकुमार -- ( सरलता से ) क्यों ? बुझा को क्यों ले जायेंगे ? सलिला -- मैं क्या जानू ? माँ से पूछूगी। ( जाने लगती है ।)
चन्द्रकुमार -- अरे तो अभी कहाँ चली ? मिष्ठान्न नहीं खायगी । सलिला -- इसीलिये तो घर जा रही हूँ । मुझे भूख भी तो लग प्राई है ।
चन्द्रकुमार
तो तनिक रुक नहीं सकती ? माँ मन्दिर जी से भाती ही होगी। फिर हम दोनों खायेंगे। मुझे भी तो भूख लगी है।
सलिला -- तू कहती है तो रुक जाती हूँ ।
चन्द्रकुमार -- लो माँ भी श्रा गई। ( वसुमती का प्रवेश ) माँ ! सलिला को भूख लगी है । वसुमती -- तो जलपान करा दो।
न्द्रकुमार -- (समझाते हुये ) जल नहीं पीना माँ । प्यास थोड़े ही लगी है। मिष्ठान्न खायेंगे हम दोनों |
वसुमती -- (हँसने लगती है ।) अच्छा तो मिष्ठान्न खायोगे ? प्रभी लाती हूँ बिटिया सलिल ! (वसुमती चली जाती है ।)
सलिला -- चन्द्र ! तूने मोसीजी से क्यों कह दिया कि सलिला को भूख लगी है ?
चन्द्रकुमार -- तो क्या हुना ? सच तो कहा है। तुझे भूख नहीं लगी ?
सलिला -- लगी तो है । ( रूठकर) पर मैं तुझसे नहीं बोलू गी ।
चन्द्रकुमार क्यों नहीं बोलेगी ? अच्छा मत बोलना। मैं भी तुझसे रक्षासूत्र नहीं बंधवाऊँगा । सलिला -- प्रच्छा, धच्छा, बोलू गी । मेरा भैया चन्द्रकुमार बड़ा मच्छा है ।
वसुमती -- ( मिष्ठान्न लाकर) लो खाओ ।
( वसुमती चली जाती है। दोनों खाने लगते हैं ।)
सलिला -- पेड़ा मीठा लगा ।
erद्रकुमारर--प्रौर चन्द्रकला तो खाकर देख कितनी मीठी हैं ।
सलिला -- ( चन्द्रकला खाते हुये ) तेरे समान ही मीठी है चन्द्र । इसका नाम तेरे जैसा ही है न इसी - लिये । (सहसा फूले गुलाब की ओर दृष्टि जाती है। (दोडकर) ये फूल कितना प्यारा लग रहा है चन्द्र !
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सान्द्रकुमार — तुझे चाहिये तो तोड़ ले ।
सलिला -- सच तोड़ लू ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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