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शास्त्र भण्डारों में 14वीं शताब्दी से लेकर 20वीं करने में सफलता प्राप्त की। इनके अतिरिक्त यहां शताब्दी तक की पाण्डुलिपियां हैं । इन भण्डारों की और भी छोटे बडे कितने ही आन्दोलन हुये और ग्रन्थ सूचियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
कितने ही भारतीय स्तर के अांदोलनों को समर्थन
दिया गया। जयपुर बसाने वाले महाराजा सवाई जयसिंह इसके पश्चात् यहां महाराजा ईश्वरीसिंह (1743- शिक्षा और अनुसंधान के केन्द्रों में भी जयपुर 50) सवाई माधोसिंह (1750-1767) सवाई नगर ने अपना पूर्ण योग दिया। दिगम्बर जैन पृथ्वीसिंह (1767-1777), महाराजा प्रतापसिंह, अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी की ओर से सर्वप्रथम महाराजा जगतसिंह (1803-1818) सवाई बनारस विश्वविद्यालय में जैन चेयर की स्थापना जयसिंह ततीय (1876-1892), सवाई रामसिंह, की गयी लेकिन वह 3-4 वर्ष के पश्चात् ही बन्द सवाई माधोसिंह एवं सवाई मानसिंह जयपुर के हो गयी। क्षेत्र की ओर से छात्रवृत्ति योजना शासक हुये जिन्होंने अपने-अपने शासन में जैन धर्म, प्रारम्भ की गयी एवं जैन साहित्य की खोज एवं संस्कृति एवं साहित्य के विकास में अपना पूर्ण प्रकाशन हेतु साहित्य शोध विभाग की स्थापना की योगदान दिया।
गयी जिसके द्वारा शोध के क्षेत्र में देश के अनेक
शोधार्थियों में जैन साहित्य के शोध के प्रति गहरी सामाजिक प्रान्दोलन : .
रुचि पैदा की जा रही है। जयपुर नगर सामाजिक प्रान्दोलनों का भी
समाज में गत 100 वर्षों में जिन समाज केन्द्र रहा । यहां होने वाले सामाजिक आन्दोलनों
सेवियों ने सामाजिक कार्यों में विशेष भाग लिया ने समस्त देश का ध्यान आकृष्ट किया। सर्वप्रथम
उनमें धन्नालालजी फौजदार, मुशी प्यारेलाल यहां शिथिलाचार के विरुद्ध 19वीं शताब्दी के
कासलीवाल, दारोगा मोतीलाल, मास्टर मोतीलाल प्रारम्भ में तीव्र आन्दोलन हुआ जिनके आधार पर
संबी, अर्जुनलाल सेठी, मुशी सूर्यनारायण सेठी, तेरहपन्थ एवं गुमानपन्थ का उत्कर्ष हुआ और
बन्जीलाल ठोलिया, कपूरचन्द पाटनी, जमनालाल धार्मिक क्रियाकाण्डों में पूर्ण शुद्धता लायी गयी।
साह, रामचंद्र खिन्दूका, बधीचंद्र गंगवाल एवं ऐसे आन्दोलन का नेतृत्व पं० टोडरमलजी ने किया
बख्शी केसरलालजी के नाम विशेषतः उल्लेखजिनको अन्त में अपने जीवन का भी बलिदान
नीय हैं। करना पड़ा। विवाह, सगाई, मृत्यु-भोज आदि सामाजिक कार्यों में कम से कम खर्च के आन्दोलन जयपुर नगर का वर्तमान में भी साहित्यिक, का नेतृत्व दीवान अमरचंद जैसे व्यक्तियों ने किया सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक दृष्टि से देश और प्रत्येक रीतिरिवाज का महजरनामा तैयार में अपना विशिष्ट महत्व है। यहां दिगम्बर और किया। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय छुआछूत श्वेताम्बर समाज के अपने अपने महाविद्यालय, निवारण का श्रीगणेश भी जयपुर से ही हुआ और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय काफी वाद-विवाद के पश्चात् समाज को इसे एवं कन्या विद्यालय हैं। श्री महावीरजी क्षेत्र की स्वीकार करना पड़ा। पं० चैनसुखदास न्योयतीर्थ ओर से संचालित साहित्य शोध विभाग के अतिरिक्त ने लोहडसाजन आंदोलन का श्रीगणेश भी जयपुर टोडरमल स्मारक भवन, लाल भवन जैसी साहिसे ही किया और समाज को सही दिशा दी तथा त्यिक संस्थायें हैं । वर्तमान में यहा बीसों न्यायतीर्थ, समाज के एक अङ्ग को पूर्ण रूप से प्रात्मसात शास्त्री, दर्शनाचार्य, एम.ए.,पी.एच.डी. उपाधिधारी
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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