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विलास । नगर में एक के पश्चात् दूसरे विद्वान, नहीं कभी-कभी स्वयं विद्वान् भी अपनी कृतियों पडित होते गये। 19वीं शताब्दी में ही यहां की प्रतिलिपियां करते थे । संवत् 1879 कार्तिक थानसिंह कवि हुये जिन्होंने सुबुद्विप्रकाश की बुदी 14 को पं० सदासुख कासलीवाल ने द्रव्य संवत् 1847 में रचना की तथा पन्नालाल खिन्दूका संग्रह भाषा की प्रतिलिपि सम्पन्न की थी। इसी ने संवत् 1871 में चारित्रसार भाषा को पूर्ण तरह पं० केशरीसिंह ने दर्शनसार की प्रति संवत् किया। पं० सदासुख कासलीवाल का जन्म संवत् 1850 में समाप्त की थी। 1852 में हुआ। इन्होंने भी कितने ही ग्रन्थों की भाषा टीका लिखी । 'अर्थ प्रकाशिका' इनकी सबसे
दीवान : उत्तम कृति मानी जाती है । पारसदास निगोत्या
जयपूर व राज्य के शासन में भी जैनों का इन्हीं का शिष्य था। केशरीसिंह भी जयपुर के
भी जयपुर के जबरदस्त योगदान रहा। यहां के अधिकांश दीवान अच्छे विद्वान् थे । इन्होंने वर्द्ध मानपुराण की जैन हये। जिन्होंने धर्म एवं साहित्य की सेवा के भाषा टीका लिखकर स्वाध्याय की प्रवृत्ति को ,
साथ-साथ राज्य की भी अनुपम सेवाएं की। इन प्रोत्साहित किया। गत 50 वर्षों में होने वाले दीवानों की पहुंच दिल्ली दरबार तक थी। वे विद्वानों में पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ का नाम ।
युद्ध क्षेत्र में भी जाते और वहां वीरतापूर्वक युद्ध सर्वाधिक उल्लेखनीय है। इन्होंने जैनदर्शनसार, करते । महाराजा के वे विश्वस्त एवं कृपापात्र पावन प्रवाह, षोडशकारण भावना जैसे ग्रन्थों की
होते थे। ऐसे दीवानों में राव कृपाराम पांड्या, संस्कृत में रचना की । पंडितजी बड़े क्रान्तिकारी दीवान श्योजीलाल, दीवान अमरचन्द, दीवान विद्वान् थे और समाज को नवीन दिशा देने में
रतनचन्द साह, दीवान नन्दलाल गोधा, थाराम
रतन इनका प्रमुख हाथ रहा था । पंडितजी के अतिरिक्त संधी (संवत 1881-1891) आदि के नाम उल्लेखपं० इन्द्रलालजी शास्त्री, पं. जवाहरलाल शास्त्री.
नीय हैं। पं० नानूलाल शास्त्री, पं० श्रीप्रकाश शास्त्री एवं पं० प्रानन्दीलाल शास्त्री के नाम उल्लेखनीय हैं शास्त्र भण्डार : जिन्होंने साहित्य एवं संस्कृति की प्रशंसनीय सेवा की।
शास्त्र भण्डारों की दृष्टि से जयपुर नगर का
देश में सर्वोच्च स्थान है। अब तक के सर्वेक्षण एवं पंडित:
खोज के आधार पर नगर में 20 से भी अधिक
शास्त्र भण्डार हैं। वे शास्त्र भण्डार ज्ञान के विशाल उक्त विद्वानों एवं साहित्यकारों के अतिरिक्त संग्रहालय हैं जिनमें सभी विषयों की पाण्डुलिपियां यहाँ और भी अनेक पंडित हुये हैं जिन्होंने ग्रन्थों मिलती हैं। अपभ्रंश की अधिकांश कृतियों को की प्रतिलिपियां करके उनके स्वाध्याय में विशेष सुरक्षित रखने का श्रेय इन्हीं शास्त्र भण्डारों को योग दिया था। ऐसे पंडितों में पं० चोखचन्द, पं० है । इन भण्डारों में आमेर शास्त्र भण्डार, तेरहपंथी सुखराम, महा. शंभुराम, पं०नैनसागर, पं० रामचन्द्र, बड़ा मन्दिर का शास्त्र मण्डार, पाटोदी के मन्दिर सेवकराम के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं । जयपुर का शास्त्र भण्डार, ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र के शास्त्र भण्डारों में 200 से अधिक ऐसी पाण्डु- भण्डार, बवीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, लिपियां हैं जिनकी प्रतिलिपि इन्हीं विद्वानों द्वारा गोधों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, लाल भवन का अथवा इनके निर्देशन में सम्पन्न हुई थी। यही प्रन्थ संग्रहालय प्रादि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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