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सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् श्री नाथूरामजी प्रेमी ने अपने 'जैन साहित्य और इतिहास" नामक पुस्तक के 'पद्मचरित प्रौर पउमचरिय' नामक निबंध में 'पउमचरिय' के रचनाकार श्री विमलसूरि को जनों की उस तृतीय धारा के होने की संभावना व्यक्त की थी जिसका प्रतिनिधित्व प्रागे चलकर यापनीय संघ ने किया। उसमें उन्होंने पांच काररण दिये थे । विद्वान् लेखक ने विमलसूर को श्वेताम्बर सिद्ध करते हुए उनमें से चार कारणों के निरसन का प्रयत्न किया है किन्तु उन्होंने इसका कोई समाधान इस लेख में नहीं किया कि उसमें तीर्थंङ्कर की माता के स्वप्नों की संख्या १५ है जबकि दिगम्बर १६ पौर श्वेताम्बर १४ मानते हैं। यह भी विचारणीय है कि दोनों ही सम्प्रदायों की मान्यतानुसार दिगम्बर श्वेताम्बर संघ भेद वि० स० १३६ या १३६ में हुवा जबकि पउमचरिउ वि० सं० ६० की रचना है ।
क्या विमलसूरि यापनीय थे ?
विमलसूरि का पउमचरिय जैन साहित्य का शीर्ष ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के विरोधी प्रविरोधी तथ्य उपलब्ध होते हैं, जो कि विमलसूरि के यापनीय होने की सम्भावना व्यक्त करते हैं । 2 पउमचरिय श्वेताम्बराचार्य विमलसूरि की कृति है, श्रनेक प्रमाण इस तथ्य को पुष्ट करते हैं ।
पउमचरियकार ने ग्रन्थ की प्रशस्ति में अपनी गुरुपरम्परा दी है। वे स्वसमय परसमय पारंगत आचार्य राहु के प्रशिष्य व नाइलकुलवंशनंदिकर प्राचार्य विजय के शिष्य हैं । इस नाइलकुल का उल्लेख श्वेताम्बर ग्रन्थों में ही मिलता है। मुनि कल्याण विजयजी का कथन है कि सूत्रों के व्याख्या ग्रन्थों के उल्लेखों से इस कुल के मुनि स्वतन्त्र प्रकृतिवाले प्रतीत होते हैं। 4 श्वेताम्बर अन्यों में इस कुल का नामोल्लेख नाइलकुल को स्पष्टरूप से श्वेताम्बर प्रमाणित करता है । नन्दिसूत्र में तो
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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-प्र० सम्पादक
डॉ० कुसुम पटोरिया, नागपुर
प्राचार्य भूतिदिन को स्पष्टरूप से नाइलकुलवंशनंदिकर ही कहा गया है निश्चित ही नाइलकुलवंश श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है तथा विमलसूरिका नाइलकुलवंशी होना उनके श्वेताम्वरत्व का प्रबल प्रमाण है ।
आचार्य र विषेण के समक्ष जैन रामकथा की दो धाराये विद्यमान थी एक पउमचरिय की और दूसरी उत्तरपुराण की । दिगम्बराचार्य रविषेण ने उत्तरपुराण की कथा को छोड़कर पउमचरिय की कथा को अपने ग्रन्थ का प्राधार बनाया है । प्राचार्य रविषेण निश्चित ही पउमचरिय से बहुत अधिक प्रभावित है, तभी उन्होंने अपना पद्मचरित्र पउमचरिय के पल्लवित छायानुवाद के रूप में लिखा है । प्राचार्य विमलसूरि के ग्रन्थ का उपयोग करने पर भी उन्होंने पउमचरिय प्रथवा विमलमूरि का नामोल्लेख नहीं किया है। निश्चित ही प्राचार्य विमलसूर उनके सम्प्रदाय के अर्थात् दिगम्बर
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