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460 वर्षों तक शासन किया और सातवाहन सत्ता का पतन 225 ई० के लगभग हुआ। प्रतः (460-225)=235 ई० पू० में सातवाहन शक्ति का अभ्युदय हुप्रा और इसी समय उनका पहला शासक सिमुक गद्दी पर बैठा । अतः 235 ई० पू० में प्रथम दो शासकों का शासनकाल (23 + 18) घटाने पर 194 ई० पू० की तिथि शेष बचती है। इसी समय सातकणि प्रथम सत्ता में पाया। किन्तु इस तिथि पर गम्भीर आपत्तियां व्यक्त की गयी हैं। पहली, सातवाहन वंश के सम्पूर्ण शासकों पोर उनकी शासनावधि के सम्बन्ध में सभी पुराण एकमत नहीं हैं । उदाहरणार्थ मत्स्यपुराण में 19 राजामों का उल्लेख किया गया है किन्तु उसमें तीस नाम गिनाये गये हैं। इसी प्रकार अन्य पुराणों की पाण्डुलिपियों में यह संख्या 28 से 31 तक बतायी गयी है। वायु, ब्रह्माण्ड, भागवत और विष्णु सभी 30 शासक बताते हैं, लेकिन 30 नामों का वर्णन नहीं करते । वायु 17, 18 या 19; ब्रह्माण्ड 17, भागवत 23 और विष्णु 22 या 24 और 23 शासकों का उल्लेख करते हैं। प्रार० जी० भण्डारकर का मत है कि लम्बी सूची में ऐसे राजकुमारों का भी नाम सम्मिलित कर लिया गया है जिन्होंने कभी शासन नहीं किया या अगर शासन किया भी तो प्रान्तीय शासकों के रूप में । इसलिये डा० हेमचन्द्र रायचौधरी का कथन है कि यदि सातवाहन वंश में केवल 19 शासक ही हुए थे तथा उनका शासनकाल केवल 300 वर्षों तक ही चला था तो यह स्वीकार कर लेने में कोई प्रापत्ति नहीं होना चाहिये कि सिमुक अन्तिम कण्व राजाओं के समय, या ईसा पूर्व पहली शती में हुपा था। यह भी स्वीकार किया जा सकता है कि सिघुक का शासन तीसरी शती ई० तक उत्तरी दक्खन से समाप्त हो चुका था।
दूसरे, पौराणिक कालक्रमानुसार शुगवंश का शासन चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक 322 ई० पू० के 137 वर्ष बाद प्रारम्भ हुआ । इस वंश ने 112 वर्ष शासन किया । अन्तिम शुग शासक अपने अमात्य द्वारा अपदस्थ कर दिया गया । इस प्रकार कण्व वंश प्रारम्भ हुआ जिसने 45 वर्ष शासन किया । अन्तिम कण्व शासक सुशर्मा सातवाहन सिमुक द्वारा शासन च्युत कर दिया गया । इस प्रकार (322 - (137+ 112+45)=28 ई० पू०) में सिमुक शासन कर रहा था । यदि यह स्वीकार किया जाय कि सिमुक का राज्यकाल 28-27 ई० पू० में समाप्त हो गया तो सिमुक के उत्तराधिकारी के 10 वर्ष के शासन के बाद सातकरिण प्रथम 17 ई० पू० में सिंहासन पर बैठा । चूकि खारवेल ने दूसरे शासन वर्ष में सातकणि पर प्राक्रमण किया था प्रतः उसकी राज्यारोहण तिथि 20-19 ई० पू० हुई जिसे हम 20 ई० पू० मान सकते हैं । वहसतिमित:
अभिलेख से ज्ञात होता है कि बारहवें वर्ष खारवेल ने मगधराज वहस तिमित (वृहस्पति'मित्र) से चरण वन्दना करायी । ई० सन् के पूर्व और पश्चात् की शतियों में निम्नांकित वृहसतिमित नामधारी राजानों ने शासन किया :
1. मोरा अभिलेख' (मथुरा) में वृहस्पतिमित्र की पुत्री यशमिता द्वारा एक मन्दिर निर्माण का उल्लेख है।
2. पमोसा अभिलेख (इलाहाबाद) में प्राषाढ़सेन को वहसतिमित का मातुल बताया गया है । यह अभिलेख उडाक के दस शासनवर्ष का है ।
3. कौशाम्बी से प्राप्त मुद्राओं पर दो भिन्न वृहस्पतिमित्रों के नाम मिलते हैं । इनमें से
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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