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घटनाओं का तो वर्णन करता है किन्तु उसकी राज्यारोहण तिथि के सम्बन्ध में वह मौन है । तो भी, परोक्षरूप से अभिलेख में कुछ ऐसे सन्दर्भ उपलब्ध हैं जिनके आधार पर हम किसी निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं । उक्त सन्दर्भों के पाठ प्रायः सभी विद्वानों ने स्वीकार कर लिये हैं अतः उन्हें प्रसंदिग्ध कहा जा सकता है । ये निम्नांकित हैं 1
1. चौथी पक्ति में 'सातकरिण' का उल्लेख है कि 'उसकी कुछ चिन्ता न करते हुए उसने पश्चिम दिशा की ओर श्राक्रमण करने के लिये अश्व, गज, पैदल और रथवाली एक विशाल सेना भेजी ।'
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2. बारहवीं पंक्ति में कहा गया है कि 'मगधराज वृहस्पतिमित्र से चरणवन्दना करायी । नन्दराज द्वारा ले जायी गयी कलिंग-जिन ( की प्रतिमा) को स्थापित किया ।'
3. पंक्ति छ: में वर्णन मिलता है कि पांचवें वर्ष में नन्दराज द्वारा 300 वर्षों (ति-वससत) पूर्व बनवायी गयी तृरणसूर्य मार्गीया प्रणाली को नगर (राजधानी) तक लाया ।'
उपरिवरिणत ‘सातकरिण' 'वहसतिमित' मौर 'नन्दराज' में से किसी एक की भी पहचान खारवेल की तिथि निश्चित करने में सहायक हो सकती है । श्रतः अब हम उन पर विचार करेंगे
सातकरण :
हाथीगुम्फा अभिलेख में उल्लिखित सातकरण का अभिज्ञान आन्ध्र सातवाहन वंश के तीसरे शासक सातकरिण प्रथम से किया गया है । इस सातकरिण के सम्बन्ध में निम्नांकित तथ्य विचारणीय है :
1. वह नागनिका के नानाघाट अभिलेख में उल्लिखित सिमुक का पुत्र या भतीजा और दक्खन का राजा था जिसे लेख में 'दक्षिणापथपति' कहा गया है ।
2. वह पश्चिम का राजा था और उसकी रक्षा कलिंग नरेश खारवेल ने की थी ।
3. वही साँचा अभिलेख का राजा सातकरिंग था । 2
4. पेरिप्लस में उसका उल्लेख हुआ है ।
5. वह भारतीय साहित्य में वर्णित प्रतिष्ठान का राजा और शक्तिकुमार का पिता था । 6. वह मुद्राओं का 'सिरि-सात' है ।
उपरिवति तथ्यों में से तीसरे तथ्य के सम्बन्ध में मार्शल का कथन है कि नानाघाट श्रीर हाथीगुम्फा अभिलेखों में उल्लिखित सातकरण ई० पू० दूसरी शती में हुआ । उस समय सांची पर शुगों का श्राधिपत्य था । श्रतः सांची पर शुंगों का स्वामित्व सम्भव नहीं प्रतीत होता । किन्तु हाथीगुम्फा अभिलेख ई० पू० पहली शती का है, तब तक शुगों का पतन हो चुका था और कण्व वंश वहां शासन कर रहा था । इसी वंश का अन्तिम शासक सुशर्मा सातवाहन वंश के पहले शासक सिमुक द्वारा अपदस्थ कर दिया गया। सिमुक के बाद उसका भाई कृष्ण गद्दी पर बैठा | M उसी का उत्तराधिकारी था ।
अगर प्रस्तुत सातकरिंग का समय या सिंहासनारोहण तिथि ज्ञात की जा सके तो खारवेल की तिथि की समस्या हल हो सकती है। पौराणिक साक्ष्य से विदित होता है कि 30 राजानों ने
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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