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आधुनिक युग को जैन दर्शन का प्रदेय नयवाद और अनेकांतवाद
डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी
जैन धर्म-दर्शन भारत के प्राचीनतम धर्म-दर्शनों में से एक प्रमुख धर्म-दर्शन है। इसके सिद्धांत ऐसे शाश्वत एवं चिरनवीन हैं, जो समसामयिक एवं प्रासंगिकता की कसौटी पर सदा खरे उतरे हैं। ये प्राचीन काल में जितने आवश्यक थे, उतने ही आधुनिक युग में भी हैं। क्योंकि संसार - परिभ्रमण से क्लांत मुमुक्षु जीव को स्वपुरुषार्थ के बल पर बंधन से मुक्ति की प्रक्रिया का प्रशस्त मार्ग जैन धर्म स्पष्ट रूप से दिखलाता है। यहां न तो ईश्वर - कर्तृत्व का प्रलोभन है, और न ही मोक्षप्राप्ति हेतु संयम साधना में किसी प्रकार की छूट। हां, इसमें भावों की विशुद्धता की महत्ता जरूर दिखलाई देती है। आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, लोक-परलोक आदि मान्यताएं इस जैन धर्म को पूर्ण आस्तिक धर्म-दर्शन प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं।
नयवाद या इसके भेद-प्रभेदों आदि के विवेचन-प्रसंग में मुख्य, गौण, सामान्य और विशेष—इन शब्दों का काफी प्रयोग होता है। वस्तुतः इन शब्दों पर ही नय, प्रमाण, अनेकांत और स्याद्वाद जैसे दार्शनिक सिद्धांतों का विवेचन आधारित होता है। अतः इन शब्दों का अर्थ समझ लेने से इन जटिल सिद्धांतों को समझ लेने में सरलता होती है।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, समता, सापेक्षता, सह-अस्तित्व, सात तत्त्व, छह द्रव्य, अनेकांत, स्याद्वाद, नय, निक्षेप आदि अनेक जैन धर्म के ऐसे अनुपम और मौलिक सिद्धांत हैं, जिनके कारण जैन धर्मदर्शन समृद्ध और गौरवान्वित है। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करता जा रहा है और उसके आश्चर्यजनक अन्वेषण सामने आ रहे हैं, इसके परिप्रेक्ष्य में जैन धर्म के ये सिद्धांत और मान्यताएं और भी निखर कर सामने आ रही हैं। अतः आधुनिक युग को जैन दर्शन का प्रदेय अनुपम है '
74 • अनेकांत विशेष
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यहां मेरे आलेख का विषय इन प्रदेयों में नयवाद और अनेकांतवाद पर विशेष आधारित है। ये दोनों जैन दर्शन के
विशेष पारिभाषिक शब्द हैं। ये अन्यत्र कहीं इन अर्थों और अभिप्रायों में उपलब्ध नहीं होते। इसीलिए भारतीय दर्शन को जैन दर्शन का इस दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण अवदान है।
नयवाद और अनेकांतवाद ऐसे सिद्धांत हैं, जिन्हें एक निबंध में बांधना संभव नहीं है। ये अनेक ग्रंथों के विषय हैं। फिर भी इस विषयक प्रयास यहां प्रस्तुत है :
नयवाद विषयक साहित्य
भारतीय दर्शनों में जैन दर्शन का अपना विशिष्ट स्थान एवं महत्त्व है। इसके पुरस्कर्ता जैन आचार्यों ने साहित्य की प्रत्येक विधा की तरह प्रत्येक दार्शनिक एवं तात्त्विक विषय पर गहन, स्वतंत्र एवं मौलिक विवेचन प्रस्तुत किया है। प्रमाण की तरह अनेक ग्रंथों में स्वतंत्र एवं विविध विषयों के साथ 'नय' का विवेचन किया गया है।
भारतीय दर्शन के क्षेत्र में 'नयवाद' जैन दर्शन की अपनी मौलिक देन है। नय विषयक वांग्मय में प्रमुख रूप में आचार्य कुन्दकुन्दकृत समयसार, उमास्वातिकृत तत्त्वार्थसूत्र, समन्तभद्राचार्यकृत आप्तमीमांसा एवं स्वयंभू-स्तोत्र, आचार्य सिद्धसेनकृत सन्मतिसूत्र, आचार्य अकलंकदेवकृत लघीयस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय, तत्त्वार्थवार्तिक, आचार्य विद्यानन्दकृत तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक, आचार्य देवसेनकृत लघुनयचक्र और आलाप पद्धति, माइल्ल-धवलकृत द्रव्यस्वभाव प्रकाशक-नयचक्र, आचार्य मल्लवादी कृत द्वादशारनयचक्र, भट्टारक देवसेनकृत नयचक्र, महाकवि स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती
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मार्च - मई, 2002
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