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दृष्टिकोण बनाता है। चेतन और अचेतन में एकता के सूत्र भी पर्याप्त हैं। उनके आधार पर हम सत्ता (अस्तित्व) तक पहुंच जाते हैं। चेतन और अचेतन में अनेकता के सूत्र भी विद्यमान हैं। इस आधार पर हम सत्ता के विभक्तीकरण तक पहुंच जाते हैं। समन्वय एकता की खोज का सूत्र है, किंतु उसकी पृष्ठभूमि में रही हुई अनेकता का अस्वीकार नहीं है। इसी आधार पर हम व्यक्ति और समाज की समीचीन व्याख्या कर सकते हैं।
वैयक्तिकता के आधार
हर व्यक्ति में वैयक्तिक और सामुदायिक दोनों प्रकार की चेतना होती है। कुछ विचारक व्यक्ति को अधिक महत्त्व देते हैं और कुछ समाज को अधिक महत्त्व देते हैं। यह समन्वय के सिद्धांत का अतिक्रमण है। वैयक्तिक विशेषताओं को छोड़कर हम व्यक्ति का सही मूल्यांकन नहीं कर सकते। जन्मजात वैयक्तिकता के सात आधार हैं
1. शरीर रचना,
2. आनुवंशिकता,
3. मानसिक चिंतन की शक्ति,
सीमा।
14 • अनेकांत विशेष
सीमा ।
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समाज रचना का दूसरा आधार है—संवेदनशीलता । समाज रचना का तीसरा आधार है— स्वामित्व की
समाज - रचना का चौथा आधार है— स्वतंत्रता की
समाज रचना का पांचवां आधार है-विकासभाषा का विकास, बौद्धिक विकास, चिंतन का विकास, शिल्प और कला का विकास।
संग्रह नय अभेदप्रधान दृष्टि है। उसके आधार पर समाज निर्माण होता है।
व्यवहार नय भेदप्रधान दृष्टि है उसके आधार पर व्यक्ति की वैयक्तिकता सुरक्षित रहती है।
व्यक्ति और समाज — दोनों का समन्वय साध कर यदि व्यवस्था, नियम, कानून बनाए जाएं तो उनका अनुपालन सहज और व्यापक होगा।
4. भाव,
5. संवेदन,
6. संवेग,
7. ज्ञान अथवा ग्रहण की क्षमता । समाज-रचना के आधार
वैयक्तिक विशेषताओं की उपेक्षा कर केवल समाज रचना की कल्पना करने वाले अपनी कल्पना को साकार नहीं कर पाते। यदि समाजवाद और साम्यवाद के साथ जन्मजात वैयक्तिक विशेषताओं का समीकरण होता तो समाज रचना को स्वस्थ आधार मिल जाता । समाजीकरण के लिए जिन आधार सूत्रों की
आवश्यकता है, वे जन्मजात वैयक्तिक विशेषताओं से जुड़े किया गया है
:
हुए हैं।
व्यक्ति और समाज-दोनों का समन्वय साध कर यदि व्यवस्था, नियम, कानून बनाए जाएं तो उनका अनुपालन सहज और व्यापक होगा। कहीं व्यक्ति को गौण, समाज को मुख्य तथा कहीं समाज को गौण, व्यक्ति को मुख्य करना आवश्यक होता है। यह गौण और मुख्य का सिद्धांत समीचीन व्यवस्था के लिए बहुत उपयोगी है भेद को गौण किए बिना समाज नहीं बनता और अभेद को गौण किए बिना व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रहती। अनेकांत का यह गौण मुख्य का सिद्धांत व्यवस्था की सफलता के लिए बहुत उपयोगी है।
स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती
1. दलदल के समान 2. कीचड़युक्त जल के समाज रचना का एक आधार है— परस्परोपग्रह समान, 3. बालूयुक्त जल के समान, 4. चट्टान पर टिके हुए अथवा परस्परावलंबन |
जल के समान ।
कहीं व्यक्ति को गौण, समाज को मुख्य तथा कहीं समाज को गौण, व्यक्ति को मुख्य करना आवश्यक होता है। यह गौण और मुख्य का सिद्धांत समीचीन व्यवस्था के लिए बहुत उपयोगी है भेद को गौण किए बिना समाज नहीं बनता और अभेद को गौण किए बिना व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रहती। अनेकांत का यह गौण मुख्य का सिद्धांत व्यवस्था की सफलता के लिए बहुत उपयोगी है।
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व्यक्तित्व का वर्गीकरण
समाज, संगठन अथवा राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या है— भाव (इमोशन)। व्यक्तिव्यक्ति के भाव अलग होते हैं। उनका वर्गीकरण चार कोटियों में
मार्च - मई, 2002
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