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'वैज्ञानिक जैविक वृद्धि को भौतिक राशियों के रूप में लेते हैं और उससे बहुत कुछ सीखते भी हैं, पर उन्हें इस बात की उपेक्षा करनी पड़ती है कि भौतिक राशियां बढ़ती नहीं। किसी भी राशि के परमाणविक कण जैसे हैं, वैसे ही सदा बने रहते हैं, जबकि जीव पदार्थ की वृद्धि में प्रारंभ में जो कुछ था वह अंत तक मौजूद तो रहता है, पर अपने ही एक पूर्णतर रूप में; कुरूप बत्तख का बच्चा बड़ा होकर सुंदर राजहंस हो जाता है। तब यदि संख्यात्मक और गुणात्मक, अजीव और जीव, कुछ बातों में समान माने जा सकते हैं पर फिर भी भिन्न बने रहते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तविक जगत को समझने के भिन्न-भिन्न मार्ग हो सकते हैं, और एक व्याख्या का दूसरी से विरोध होना आवश्यक नहीं, जैसे त्रिकोण में कोण निहित ही होता है. और विकर्णयुक्त वर्ग में दोनों ही निहित होते हैं। यह संभावना हमें वैज्ञानिक और धार्मिक दार्शनिक के विभिन्न दृष्टिबिंदुओं और अंतर्दृष्टियों पर लौटा लाती है। वे न केवल एक ही पदार्थ को विभिन्न मापदंडों और विभिन्न उद्देश्यों से परखते हैं, बल्कि निश्चय और सत्य के विषय में उनके दृष्टिकोणों के भिन्नभिन्न होने की संभावना है।'
मार्टिन सिरिल डासी
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