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[ आ ] इस परिसंवाद की तीनों गोष्ठियाँ तीन भूतपूर्वकुलपतियों की छत्रछाया में सम्पन्न हुई थीं। संभवतः तीनों के चिन्तन में उन कुलपतियों का योगदान रहा है । फलतः मैं सपादक एवं संयोजक की हैसियत से पं० करुणापति त्रिपाठी, पं० बदरीनाथ शुक्ल तथा पं० गौरीनाथशास्त्री का चिर आभारी हूँ जो मेरे द्वारा सुझाये गये विषयों पर गोष्ठी करने में सहयोग देकर इस नये चिन्तन को आगे बढ़ाने का प्रयत्न किये हैं। संस्कृत-विश्वविद्यालय में नये चिन्तन के लिए यदि प्रो. जगन्नाथ उपाध्याय ( नेहरूफेलो ) का प्रोत्साहन न प्राप्त हो तो चलाना मुश्किल सा हो जायेगा। संभवतः हर नयापन में परम्परा को वदस्तूर रखते हुए परम्परागतविकास को चलाने की टीस प्रो० उपाध्याय में सदा से रही हैं। ये गोष्ठियां उनके नेतृत्व में ही सम्पन्न हुई हैं। अतः उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना मेरा परम कर्तव्य है। बिना उनके परामर्श एवं निर्देशन के इनका संपादन करना कठिन था। अतएव इस पवित्र कार्य को सम्पन्न कराने में सहयोग के लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूँ। तुलनात्मकधर्मदर्शनविभाग के आचार्य प्रो० महाप्रभुलाल गोस्वामी विभाग के विकास के लिए होने वाले किसी भी कार्य में सदा प्रोत्साहन देते रहते हैं, उन्होंने भूमिका लिवकर इस परिसंवाद को मूल्य प्रदान किया है। एतदर्थ हम उनके आभारी है तथा उन्हें धन्यवाद देते हैं। परिसंवाद को दर्शन संकाय के संपादकमण्डलों का सहयोग भी प्रो. श्रीरामपाण्डेय के नेतृत्व में प्राप्त हुआ है, फलतः वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। प्रो. श्रीरामशंकर त्रिपाठी संकायाध्यक्ष, श्रमण विद्या ने हमारे विभागीय संगोष्ठियों में सदा सहायता की है तथा प्रकाशन में सुझाव देते रहते हैं, अतएव मैं उनका धन्यवाद देता कर्तव्य समझता हूँ। इस काम को पूर्ण करने में प्रकाशनाधिकारी डा. हरिश्चन्द्रमणि त्रिपाठी, प्रेस अधिकारी श्रीघनश्याम उपाध्याय आदि का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता है, अतः मैं उन सबको धन्यवाद देना अपना कर्तव्य मानता हूं। मेरे विभाग के प्रायः अधिकतर छात्र हमारी गोष्ठियों में तथा हर कार्य में सहयोगी होते हैं प्रूफ संशोधन आदि में भी उनका सहयोग रहा है। एतदर्थ मैं श्रीरामविहारी द्विवेदी-अनुसंधाता, श्रीवशिष्ठमुनि मिश्र-अनुसंधाता, श्रीविजयकर चौबे, श्रीअवधेश कुमार चौबे, कु० ज्योति तथा ब्रह्मचारी कर्मानन्द को धन्यवाद तथा आशीर्वाद देता हूँ कि वे इस परम्परागत विश्वविद्यालय में एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करें जिससे परम्परागत चिन्तन का मूल्य बढ़े।
राधेश्यामधर द्विवेदी प्राध्यापक (तुलनात्मक धर्मदर्शन) सम्पूर्णानन्द-संस्कृत-विश्वविद्यालय
वाराणसी
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