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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
मानते हैं, इसलिए वे दोनों की उन्नति के लिए समानरूप से बल देते हैं। क्योंकि अहिंसा व्यक्ति और समाज दोनों क्षेत्रों में समानरूप से व्याप्त है, अतः अन्त में पूर्ण सत्य का दर्शन करा कर वह सामाजिक धर्म हो जाती है।
__मनुष्य हमेशा अपने को सुखी करने की चेष्टा करता है। दूसरों को पीड़ा देना उसकी सहज वृत्ति नहीं है, इतना ही दूसरों के लिए अपना उत्सर्ग कर देना उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसलिए गांधी ने त्याग और तपस् की ऐतिहासिक घटनाओं की स्मृति को सजोव बनाने का प्रयत्न किया। प्रतिहिंसा जीवधारी का स्वभाव नहीं है, इसलिए वह जीवन की विधि नहीं हो सकती। इसीलिए शासन करनेवाले और आदेश देने वाले समस्त शास्त्रों में प्रतिहिंसा अनिवार्य नहीं मानी गई, अपि तु हिंसा क्षम्य मानी गई। हिंसा किसी परिस्थिति में सहज वृत्ति मान भी ली जाए, फिर भी वह बाह्य परिस्थिति से जन्य एवं प्रतिघात से उत्पन्न होती है, इसलिए विकारमात्र है, वह कथमपि संस्कार नही है।
____ अहिंसा निवृत्ति कर्म अथवा अक्रिया नहीं है, अपितु वह बलवान प्रवृत्ति और प्रक्रिया है। हिंसा का मूल अहंकार है। अहंकारमूलक कर्म सीमित होता है। इसलिए अहिंसा की शक्ति अपरिमित होती है और वह सतत बढ़ती ही रहती है। प्रतिघात में उतनी शक्ति नहीं है, जिससे दुष्कर्मों का विनाश और सज्जनों की रक्षा पर्याप्तरूप से की जा सके। प्रतिघात सजातीय दूसरे प्रतिघात को पैदा करता हुआ क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष आदि को तीव्रता से उत्तरोत्तर शक्तिशाली होता जाता है। शक्तिशाली प्रतिघात स्वयं प्रयोग करने वाले और जिसके ऊपर प्रयोग किया जाता है, दोनों को नीति और धर्म से च्युत कर देता है। नाश से अभिन्न यह प्रतिघात नाश से नाश को पैदा करता हुआ अन्त में नाश में ही पर्यवसित होता है । प्रतिघात का यही बड़ा भारी दोष है, जिसके कारण उसने महापुरुषों के द्वारा धर्म के रक्षण तथा लोक के कल्याण के लिए बार-बार किए गए प्रयासों को विफल कर दिया। यद्यपि उन प्रयासों ने कुछ कालके लिए सज्जनों को राहत प्रदान की, किन्तु चिरकालिक शान्ति और सुख के लिये वे धर्म का विधान नहीं कर सके। महात्मा गांधी ने प्रतिकार की अहिंसक पद्धति का आविष्कार करके जो नैतिक क्रान्ति पैदा की, वह क्रान्ति सम्पूर्ण मानव समाज की हिंसामूलक जीवन-व्यवस्था का तथा उसके आधार पर प्रवर्तित नीतिशास्त्रों का समूल नाश करके शाश्वत शान्ति देनेवाली नवीन व्यवस्था को जन्म देने में समर्थ होगी।
हिंसा से रहित यह प्रतीकार निर्माण है, जो विपक्षी के हृदय का परिवर्तन करता है। जिस दिन से यह अहिंसक प्रतीकार प्रारम्भ होता है, उसी दिन से यह
परिसंवाद-३
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