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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
गांधीजी मानव प्रेम से अनुप्राणित तथा देशबन्धुत्व पर आश्रित राष्ट्रीयता के समर्थक थे । वह देश त्रुत्व तथा मानवमात्र के प्रति सद्भावना को अद्वैत की सिद्धि का आवश्यक साधन मानते थे । जो व्यक्ति सम्प्रदाय, भाषा या वंश के भेद के कारण अपने देशवासियों के साथ आत्मीयता अनुभव नहीं कर सकता, वह भला सारे विश्व से अद्वैत की सिद्धि किस तरह कर सकता है। इस तरह गांधीजी के विचार में देशबन्धुत्व पर आश्रित राष्ट्रीयता, अर्न्तराष्ट्रीयता तथा विश्वभावना का सोपान है । गांधीजी जानते थे कि संकीर्ण साम्प्रदायिक तथा आक्रमणशील राष्ट्रीयता अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग, विश्वशान्ति एवं मानवप्रेम में बाधा उपस्थित करती है । अतः वह इनके विरुद्ध थे । राष्ट्र प्रेम के साथ साथ विश्वप्रेम उनका लक्ष्य था। वह चाहते थे कि देश स्वतन्त्र और समृद्ध हो, इसलिए नहीं कि सर्वशक्तिसम्पन्न भारत आक्रमणशील उपायों द्वारा सारे विश्वपर अपना आधिपत्य अथवा प्रभुत्व प्रतिष्ठित करे, बल्कि इसलिए कि समता और स्वतन्त्रता के आधार पर सारे विश्व के साथ सहयोग को प्रतिष्ठित करते हुए वह मानवमात्र की अभिवृद्धि में अपनी इच्छा से अधिक से अधिक योगदान कर सके। गांधीजी के ये विचार सार्थक हैं । इनका अनुकरण शान्ति, अभ्युदय और अद्वैत की सिद्धि के लिए नितान्त आवश्यक है ।
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गांधीजी वैज्ञानिकों के मनोयोग के प्रशंसक तथा विज्ञान द्वारा मानव कल्याण की अभिवृद्धि के समर्थक थे । पर वह विज्ञान के हिंसात्मक प्रयोगों तथा ध्वंसात्मक आविष्कारों के विरोधी थे । धनलिप्सा की तुष्टि के लिये वैज्ञानिक तथ्यों और आविष्कारों का प्रयोग वह सर्वथा अनुचित समझते थे । वह मानवताविहीन विज्ञान को अनिष्टकर तथा मानवता से समन्वित विज्ञान को श्रेयस्कर समझते थे । प्राविधिक क्षेत्र में वह विज्ञान की सहायता से छोटे और मझोले उद्योगों की शिल्पविधि में इस प्रकार के सुधारों और आविष्कारों के पक्ष में थे जिनसे शिल्पकार अधिक आसानी से अपना जीवनोपार्जन कर सकें। पर विज्ञान द्वारा उन यन्त्रों या बड़ी बड़ी मशीनों के आविष्कार के विरोधी थे। जिनके द्वारा आर्थिकशक्ति के केन्द्रीकरण में तथा श्रमिकों के शोषण एवं उनकी बेकारी में वृद्धि हो । बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा औद्योगीकरण की सनक को वह मानवजाति का अभिशाप समझते थे । वह आधुनिक उद्योगवाद के विरोधी थे, फिर भी गांधी जी उन उद्योगों और कार्यो में बड़ी बड़ी मशीनों का प्रयोग उचित समझते थे जिनका निष्पादन उनके द्वारा ही आसानी से ठीक तौर पर हो सकता है या जिनसे छोटे और मझौले उद्योगों को ठीक तौर पर सरलता से चलाने के लिये छोटे और मझौले यन्त्र या अन्य प्राविधिक सुविधाएं प्राप्त
परिसंवाद - ३
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