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मौलिक दर्शन की सम्भाव्य दिशाएं
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इसके विपरीत, अनुभवाभिधायी दर्शन के अनुसार, अनुभव अथवा तत्त्व अभिलाप्य हो अथवा अनभिलाप्य, किन्तु निश्चय ही अनपलाप्य है। विज्ञानवाद को अनुभवापलापी नहीं मानना चाहिए। बसुबन्धु कहता है कि वह अनुभूत जगत् का निषेध अनभिलाप्यात्मना नहीं, प्रत्युत कल्पितात्मना ररता है-यो वालेर धर्माणां स्वभावो प्राह्य ग्राहकादिः परिकल्पितस् तेन परिकल्पितेनात्मना तेषां नैरात्म्यं न तु अभिलाप्येनात्मना यो बुद्धानां विषयः।' तात्पर्य यह कि वसुबन्धु जगत् की व्याख्या करता है, निषेध नहीं। स्वभावमात्रम्-सिद्धान्त भी इसकी पुष्टि है पश्चिम में इलियाई जेनो शायद सबसे बड़ा अनुभवापलापी और आस्ट्रियाई माइनांग सबसे बड़ा अनुभवाभिधायी दार्शनिक माना जा सकता है।
अस्तु, आधुनिक भारतीय दार्शनिक को निर्णय करना है कि इनमें से कौन-सा दृष्टिकोण अपनाने योग्य है।
दर्शन एक अन्य दृष्टि से दो कोटियों में बाँटे जा सकते हैं--बुद्धिवाद (Rationalism ) और अबुद्धिवाद ( Irrationalism)। बुद्धिवाद के अनुसार अनुभव अथवा जगत् बुद्धिगम्य है, व्याख्येय है, जब कि अबुद्धिवाद के अनुसार अबुद्धिगम्य । बुद्धधगम्य है, अव्याख्येय है । मैं माध्यमिक दर्शन में अबुद्धिवाद की स्पष्ट रेखा देखता हूँ। पश्चिम में जेनो के साथ नीत्शे को भी इसी कोटि के अन्तर्गत समझना चाहिए। पश्चिम का सबसे बड़ा बुद्धिवादी हेगेल हैं, जिसका सुख्यात सूत्र है, सत्ताबुद्धिगम्य है (The real is rational) । लाइबनीज़ इस जगत् को सर्वश्रेष्ठ जगत् (The best of all possible worlds ) मानता है और सर्वश्रेष्ठ बुद्धिवादियों की श्रेणी में आ जाता है। यहाँ बुद्धिवाद और अबुद्धिवाद के भेद का एक नया आयाम उद्घाटित होता है। अस्तित्व के विषय में दो प्रकार के दृष्टिकोण पाये जाते हैं । वैदिक दृष्टि में संसार ससार है, सम्यक्सार है, निस्सार नहीं। उसकी सृष्टि ऋत और सत्य से हुई। है, और उसकी संस्थिति भी ऋत, सत्य, आदि श्रेयों, सुतत्त्वों, का फल है। ___'सत्यं बृहन्, ऋतमुग्रं, दीक्षा तपो, ब्रह्म, यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।' उपनिषद् की घोषणा है--
'पूर्णमदः, पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
'पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥' १.विंशतिका-स्वोपज्ञवृत्ति, कारिका १०, पृ. ४१ २.( शाकला-शेशिरीया ) ऋग्वेद-संहिता १०.१९० ३. ( शौनकीया ) अर्थवेदसंहिता १२.१ ४. कई उपनिषदों का शान्तिपाठ
परिसंवाद-३
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