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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
कृष्ण, वशिष्ठ, शंकराचार्य की भाँति आज के समाज में भी दार्शनिक का स्थान सर्वोच्च है।
अतः यही निष्कर्ष है कि पुराने अथवा आधुनिक समाज में रहते हुए भी रागद्वेषशून्य होकर देहाद्यनात्मवस्तुओं से पृथक् आत्मस्वरूपानुसन्धान करना ही अध्यात्मनिष्ठता है । अध्यात्म का सदा सर्वविध सम्बन्ध समाज से रहा है तथा रहेगा। अतः गीता में कहा है
अध्यात्मविवाविद्यानाम् उपनिषद भी यही सन्देश देती है
ब्रह्मविद्यां सर्वविद्या प्रतिष्ठामथर्वणाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥
परिसंवाद-३
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