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भारतीय चिंतन परंपरा में नये जीवन-दर्शन की अपेक्षा
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मूल्यों का निर्धारण दर्शन का एक स्वतन्त्र क्षेत्र है, जिसमें विज्ञान सहायक के रूप में प्रवेश लिया था, किन्तु बाद में उसने उत्तरोत्तर अपने शक्ति मूलक विचारों एवं चमत्कारों के कारण सत्य की खोज और भावजगत के विश्लेषण के आधार पर इतिहास ने मानवीय श्रद्धा को जो श्रेष्ठ सम्मान दिया था, उसे घटा दिया। इस सम्बन्ध में इस शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक बट्रेड रसल की चिन्ता की ओर सभी दार्शनिकों का ध्यान जाना चाहिये। रसेल दर्शन के क्षेत्र में भौतिक विज्ञान की जबर्दस्त हिमायत करते हैं किन्तु वे कहते हैं कि-"जहाँ तक विज्ञान का स्वरूप ज्ञान की खोज है, वहाँ तक तो ठीक है; पर उससे भिन्न मानव मूल्यों का क्षेत्र विज्ञान की सीमाओं से बाहर है। शक्ति की खोज के रूप में विज्ञान को मानव मूल्यों के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिये ।' विश्व में गिरते हुए मानवसम्मान से चिन्तित होकर वे कहते हैं “एक नये नैतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें प्रकृति की शक्तियों की अधीनता के स्थान पर मनुष्य में जो कुछ सर्वोत्तम है, उसके सम्मान की प्रतिष्ठा की जाय। जहाँ इस सम्मान का अभाव है, वही वैज्ञानिक तकनीक खतरनाक है।"
रसेल की इस चेतावनी के बावजूद भारतीयदर्शनों के प्रसंग में भौतिक विज्ञान की तात्त्विक उपलब्धियों का बहुत ही महत्त्व है। भारतीय दर्शनों की अपनी विविध पदार्थ विद्यायें हैं, उनके उपादानों और लक्षणों के अध्ययन में भौतिक विज्ञानों का महत्त्वपूर्ण योगदान होगा। इसकी उपयोगिता केवल पदार्थ सम्बन्धी अपनी अवधारणाओं को संशोधित एवं सुसंगत कर लेने में ही नहीं, प्रत्युत नये खोजों के द्वारा नये सिद्धान्तों की स्थापनाओं में भी है। इसके अतिरिक्त भौतिकी ने अपने से भिन्न अन्य सभी मानव-विज्ञानों एवं समाजविज्ञानों को भी प्रभावित किया है, जिनका दर्शन के अध्ययन में महान् उपकार है, जिसकी भारतीयदर्शन के प्रसंग में उपेक्षा नहीं की जा सकती। पाश्चात्य देशों के आधार पर भारतीय दर्शनों को यह सुअवसर प्राप्त है कि वे अपने तत्त्वचिन्तन को समृद्ध करने में आधुनिक विज्ञानों का सीमित उपयोग कर लें। ज्ञान के जिस विराट् परिवेश में विश्व चल रहा है, उसमें इस विषय में किसी प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिये कि अध्ययन की वैज्ञानिक परिदृष्टि को हमें भी अंगीकार करना होगा, अन्यथा हमारे तत्त्वज्ञान की व्यावहारिक परीक्षा ही नहीं हो पायेगी और न तो हम नये तथ्यों को अपने दर्शन में जोड़ पायेंगे। भारतीय चिन्तन के सन्दर्भ में वैज्ञानिक परिदृष्टि के प्रयोग का क्या रूप होगा, इसका आकलन करना भी हमारा कर्तव्य है।
परिसंवाद-३
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