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भारतीय चिन्तन में नये दर्शन के उद्भाधना की आवश्यकता
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के रूप में रखना चाहिए। क्योंकि धर्मनिरपेक्ष का अर्थ प्रायः जो आज लगाया जात है, वह है पक्षपात विहीन राज्य अर्थात् वह राज्य जो किसी धर्म के पक्षपात में विश्वास न करे । खैर जो भी अर्थ शासनतन्त्र ग्रहण करे, मैं उसमें न जाकर केवल शुक्रनीति, एवं कौटिल्य के आधार पर बात करना चाहूँगा। शुक्रनीति में आया है कि जिस मुहल्ले या नगर में जो धर्म या परम्परा चली आ रही है राजा उस धर्म एवं परम्परा की कभी अवहेलना न करे । और उन लोगों के लिए उनके अनुसार मन्दिर बनवाने एवं पूजा-पाठ करने की छूट दे । इसी प्रकार चाणक्य भी कहते हैं
यस्मिन् देशे य आचार पारम्पर्यक्रमागतः । तथैव परिपाल्योऽसौ न वै स्ववशमागतः ।
अर्थात् जिस देश में जो आचार परम्परा जिस क्रम से आयी हो उसका उसी प्रकार पालन होना चाहिए। स्वतन्त्र होकर ही इस प्रकार हमारे यहाँ धर्मसापेक्ष पक्षपातविहीन राज्य की अब धारणा है।
प्रस्तुत-कर्ता श्रीराधेश्यामधर द्विवेदी
परिसंवाद-३
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