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गांधी जी के प्रयोग : आधुनिक सन्दर्भ में को यदि उस धरती पर जीवित रहना है तो गांधीजी के प्रयोग के अतिरिक्त और कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम चरण में सर्वोदय का प्रयोग देश को दिया। जिसका अर्थ है सबका उदय अर्थात् हर व्यक्ति का पूर्ण विकास । किन्तु देश ने एक विदेशी विचारधारा को स्वीकार किया, जिसे हम समाजवाद कहते हैं। उसे संविधान में भी स्थान दिया गया है। हिटलर भी समाजवादी था और स्टालिन तथा माओत्सेतुङ्ग भी समाजवादी थे। समाजवाद व्यक्ति की उपेक्षा और उसके अधिकारो के हनन के रूप में हमारे सामने आ रहा है। गांधीजी ने सर्वोदय और अन्त्योदय का जो विचार दिया। उसका समर्थन आज विश्व का प्रसिद्ध क्रान्तिविचारक 'पालोफेयरे'कर रहा है और उसका कहना है कि क्रांति वही है जिसमें समाज का अन्तिम उपेक्षित व्यक्ति केन्द्र में स्थान पा सके । अन्त्योदय की भी यही संकल्पना है।
जैसा प्रारम्भ में कहा गया गांधीजी का पूरा जीवन सत्य पर किये मये प्रयोगों की एक शृखला है। त्याग, तपस्या, साधना, अपरिग्रह के इतिहास में इस प्रकार का दूसरा उदाहरण मिलना सम्भव नहीं है जिस व्यक्ति के संकेत पर करोड़पति धन उपलब्ध कराते थे, उसका आज अपना कुछ भी नहीं है, एक छोटी सी फूस की झोपड़ी सेवाग्राम में खड़ी है। जब अंग्रेजों ने देश की स्वतन्त्रता और उसका सम्पूर्ण शासन गांधी जी को सौंपा तो गांधीजी दिल्ली छोड़कर हिन्दूमुसलमानों में सद्भाव बढ़ाने के लिये 'नोआखाली' चले गये। राजसत्ता के प्रति यह निर्वेद और वैराग्य इतिहास में अद्वितीय है।
उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक दो छोटे कपड़ों में बिता दिया और उसी वेषभूषा में बड़े से बड़े सम्मेलनों में भाग लेते रहे। वे देश की संस्कृति और गाँव की संस्कृति के प्राण और प्रतीक थे। उन्होंने जीवन के अनेक आयामों में अनेक प्रयोग किये, जिनके निष्कर्ष आज भी उपयोगी एवं श्रेयस्कर हैं और युगों तक मनुष्य के लिये कल्याणकारी सिद्ध होंगे।
परिसंवाद-३
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