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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
के श्रम या शरीर के श्रम का आधिक्य हो, और वह जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से आवद्ध हो। यह कोई ऐसी बात नहीं थी जो मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, नैतिकता और हमारी संस्कृति के अनुकूल न हों। पाश्चात्य जगत के महान विचारकों ने जिनमें जान डीवी का नाम उल्लेखनीय है, ने इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया और कर्मयोग का सन्देश देकर अमेरिका को एक सर्वाधिक शक्तिशाली और सर्वाग्रणी राष्ट्र के रूप में खड़ा कर दिया। गांधी जी की बुनियादी शिक्षा का दूसरा प्रमुख सिद्धान्त हर प्रकार की आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन था। उनका कहना था कि जो व्यक्ति या राष्ट्र अपनो बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये दूसरों का मुँह देखता है उसे स्वतंत्र की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। स्वतन्त्र वही व्यक्ति है और मुक्ति का सुख उसे ही प्राप्त हो सकता है जो अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर सकें। राजनैतिक परतंत्रता से अधिक घातक गांधीजी के लिये चारित्रिक परतंत्रता थी। उन्होंने बार-बार इस बात को दुहराया था कि वे केवल शासकों में परिवर्तन नही चाहते, प्रत्युत एक ऐसा नया समाज बनाना चाहते हैं जो स्वावलम्बन के मंत्र से अनुप्राणित हो। गांधीजी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे और बुनियादी शिक्षा के माध्यम से वे ऐसी स्थिति उत्पन्न करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज भारत छोड़कर स्वयं चले जाएँ । आर्थिक शोषण के लिये ही साम्राज्यवाद जीता है। जब देश आत्मनिर्भर हो जायेगा तो आर्थिक शोषण के लिये कोई गुंजाइश नहीं रहेगी, यह था गांधी जी का दृष्टिकोण । यदि हमने उत्पादक क्षमता बढ़ाई होती और स्वावलम्बन का पाठ सीखा होता तो आज यह रिपोर्ट बार-बार न होती कि देश का आर्थिक विकास तो हुआ किन्तु अमीर और गरीब के बीच की खाई और गहरी और चौड़ी होती गयी। कोठारी आयोग ने प्रथम अध्याय में राष्ट्रीय शैक्षिक उद्देश्यों की चर्चा करते हुए देश की उत्पादक क्षमता बढ़ाने पर बड़ा बल दिया है। प्रश्न यह है कि आधुनिक सन्दर्भ में क्या गांधीजी के शिक्षा पर किये गये प्रयोग की कोई उपयोगिता है ? आज शिक्षाव्यवस्था की ऊपर जो प्रमुख आरोप लगाये जाते हैं उनमें एक यह है कि स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय बेरोजगारी के कारखाने हैं। और दूसरा यह कि नवयुवकों का चारित्रिक अधःपतन होता जा रहा है। बहुधा लोग कहते हैं कि शिक्षा का रोजगार से कोई सम्बन्ध नहीं है, किन्तु ऐसा भी लोग कहते हैं, जो उच्च श्रेणी के बुद्धिजीवि हैं, वे अपने बच्चों को अच्छे रोजगारों में लगाने की ब्यवस्था कर लेते हैं। मेरे विचार में शिक्षा का रोजगार से अत्यन्त गहरा सम्बन्ध है, सामाजिक दृष्टि से भी और व्यक्तिगत दृष्टि से भी। क्योंकि समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उचित शिक्षा ही डाक्टर, इंजीनियर एवं तकनीकज्ञ दे सकती है। अगर शिक्षा यह जिम्मेवारी पूरी नहीं करती तो शिक्षा की दुकानें निश्चय ही बन्द हो
परिसंवाद-३
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