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गांधीजी के प्रयोग : आधुनिक सन्दर्भ में
समाज की रचना का जो लक्ष्य है, वही विश्वशान्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। गांधीजी का समाज शोषण विहीन समाज होगा, वर्गविहीन समाज होगा, और जिसकी आधारशिला सर्वोदय होगी । कार्लमार्क्स ने भी एक ऐसे ही समाज का स्वप्न देखा था, लेकिन उसके समाज की रचना वर्ग संघर्ष पर आधारित थी । गांधीजी समाज में वर्ग संघर्ष नहीं, अपितु हृदय परिवर्तन और साधनों की पवित्रता पर बल दिया गया। इस दृष्टि से मंत्रीजी का चिन्तन विश्व के अन्य महान् विचारकों 'बहुत आगे निकल गया और उहोंने एक ऐसी विचारधारा दी जो केवल आधुनिक सन्दर्भ में नहीं प्रत्युत युगों तक मनुष्य का मार्ग दर्शन करती रहेगी ।
गांधीजी एक महान शांतिकारी व्यक्ति थे किन्तु वे इतिहास के अन्य महान क्रांतिकारियों से भिन्न थे, क्योंकि गांधीजी की क्रांति का आधार अहिंसा थी, उनका विचार था कि हिंसा पर आधारित जो भी क्रांतियाँ अथवा परिवर्तन होते हैं, वे स्थाई नहीं हो सकते। क्योंकि एक हिंसा सदैव दूसरो हिंसा को जन्म देती है और यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। आधुनिक सन्दर्भ में विश्व के शीर्षस्थ क्रांति विचारकों ने गांधीजी का यह सिद्धान्त स्वीकार कर लिया है कि बड़ी-बड़ी क्रांतियाँ जो रक्तपात, हिंसा और शस्त्रों की सहायता से की जाती हैं सफल नहीं होती । यह कोई साधारण बात नहीं है कि पाश्चात्य जगत में गांधीजी के अहिंसक क्रांति के विचार मान लिये जाय और अपने देश में हम निरादर करें।
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गांधीजी के जीवन का दूसरा मुख प्रयोग उनकी बुनियादी शिक्षा है । गांधीजी ने एक बार यह कहा था कि बुनियादी शिक्षा देश के लिये मेरी सर्वोत्तम देन हैं । जो व्यक्ति अहिंसक क्रांति में विश्वास रखता है उसके लिये शिक्षा से बढ़कर और कोई वस्तु नहीं है, क्योंकि अहिंसक क्रांति का मूल आधार लोक मानस में परिवर्तन करना है जो बिना शिक्षा के सम्भव नहीं है । माओत्से तुङ्ग ने क्रांति में मानसिक परिवर्तन के महत्त्व को बहुत विलम्ब से पहचाना और उसने कहा कि क्रान्ति के पहले सांस्कृति क्रांति होनी चाहिये अन्यथा वह प्रतीक क्रांति में बदल जाती है जो इस पृष्टभूमि को नहीं समझता, वह गांधीजी की बुनियादी शिक्षा के प्रयोग को भी नहीं समझ सकता। इसीलिये हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों ने गांधीजी के प्रयोग का विरोध किया और उसे असफल बनाने के प्रयास में कोई कमी नहीं की । बुनियादी शिक्षा के कुछ प्रमुख सिद्धान्त थे ।
एक तो यह कि शिक्षा का व्यावहारिक क्रिया से गहरा सम्बन्ध हो, और वह क्रिया अर्थहीन क्रिया न होकर समाजोपयोगी उत्पादक क्रिया हो । इस क्रिया में हाथ
परिसंवाद - ३
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