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भारतीय दर्शनों की दृष्टि से गांधी-विचारों का विवेचन
पारिभाषिक अर्थ में गांधी को दार्शनिक नहीं कहा जा सकता। वे जीवनजगत्, आत्मा-परमात्मा की सी मौलिक समस्याओं की तार्किक गवेषणा एवं विश्लेषण में नहीं पड़ना चाहते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा के प्रारम्भ में इस बात पर स्पष्ट शब्दों में प्रकाश डाला है। यदि शास्त्रीय विवेचन ही मेरा उद्देश्य होता तो मुझे अपनी आत्मकथा नहीं लिखनी चाहिए, किन्तु मेरा उद्देश्य जीवन में आन्तरिक मूल्यों के दैनंदिन जीवन के व्यावहारिक प्रयोग के विवेचन से है। इसीलिए मैने आत्मकथा का शीर्षक 'दि स्टोरी आफ माई एक्सपेरीमेन्ट्स विथ टू थ-सत्य पर मेरे प्रयोगों की कथा' रखा है।'
गधी एक साधक, योगी एवं भक्त हैं। उनके समक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम राम का आदर्श है जो निरीह अबला किन्तु मूर्तिमती मानवता सीता को दुष्ट रावण के संत्रास से मुक्त कराने के लिये कटिबद्ध हैं। उनके समक्ष महायोगेश्वर कृष्ण का आदर्श है जो धर्म की संस्थापना एवं लोककल्याण हेतु कृतसंकल्प हैं। उनके समक्ष बोधिसत्त्व की महाकरुणा का आदर्श है-'कलिकलुषकृतानि यानि लोके तानि मयि पतन्तु विमुच्यतां हि लोकः'। उनके समक्ष भारतीय वाङ्मय का चिरन्तन सर्वोदय–'सर्वे सुखिनः सन्तु, सन्तु सर्वे निारमयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्' का है।
परमशुभ सत्य के अन्वेषण में अहिंसा, ब्रह्मचर्यादि उदात्त मूल्यों का प्रयोग गांधी ने किया। यही उनकी आध्यात्मिक साधना यो। उन्होंने आध्यात्मिक साधना की शक्ति से विश्व को चमत्कृत किया। गांधी में इस शक्ति का आभास गोपाल कृष्ण गोखले को शुरू में ही हो गया था। उन्होंने कभी कहा था-'गांधा में मिट्टी से नायक गढ़ देने की क्षमता है।' गांधी की इस आध्यात्मिक शक्ति का अभास स्वयं पं. नेहरू को भी था। इसी अर्थ में गांधी साधक हैं।
गांधी ने आत्मशुद्धि पर बल दिया है। उन्होंने अपनी आत्मकथा के अन्त में इस पर अच्छा प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं-'अद्वैती स्थिति' की प्राप्ति आत्मशद्धि के बिना सम्भव नहीं है। बिना आत्मशुद्धि के अहिंसा का अभ्यास एक स्वप्न है। जो हृदय से शुद्ध नहीं होता, उसे ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हो सकता । पूर्ण शुद्धता का आदर्श गीता की स्थित-प्रज्ञता है। गांधी ने अत्यन्त विनयपूर्ण शब्दों में १. गांधी : ऐन आटोवायोग्रॉफी ।
परिसंवाद-३
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