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समता के आयाम
प्रो० कृष्णनाथ १. समता का एक आयाम सामान्य है एक विशेष । सामान्य रूप से समता का अर्थ है दूसरों के समान सम्मान, दर्जा, ओहदा । यह समता मनुष्यों के लिंग, रंग, गुण, कर्म, शक्ति आदि से निरपेक्ष है। मनुष्य होने मात्र से, सामान्य मनुष्यता के नाते एक दूसरे के बराबर हैं । मनुष्य समान रूप से जनमता है, सुख-दुःख का अनुभव करता है, जरा और मृत्यु को प्राप्त होता है, आदि सामान्य गुणों के कारण मनुष्य समान आदर का अधिकारी है। समता का यह सामान्य, साधारण, निरपेक्ष रूप है। आत्मदृष्टि से इसका आधार यह है कि प्राणिमात्र एक ही ईश्वर से वासित है, इसलिए वे सभी समान हैं। जो आत्मा या ईश्वर नहीं मानते उनके लिए मनुष्यता का सामान्य गुण इसका आधार है।
समता के विशेष रूप इस सामान्य से जुड़े हुए हैं। मात्र विश्लेषण के लिए इसे भिन्न करके देखा जा रहा है। ये विशेष रूप हैं-१. सामाजिक, २. आर्थिक, ३. राजनीतिक और ४. आध्यात्मिक। इनमें से पहले तीन-सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक बाह्य हैं । अन्तिम आन्तरिक है । बाह्य-अन्तर में अन्तरावलम्बन है। अलगाव नहीं।
सामाजिक समता का अर्थ है मनुष्य समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों कार्यों में बँटे होने पर भी मनुष्य के सम्मान में समता । यह उसी निरपेक्ष समता का समाज में प्रकाश है।
आर्थिक समता सम्मान और सेवाओं का न्याय्य वितरण है। इसका तात्पर्य उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं का बराबर-बराबर बँटवारा या सरीखापन नहीं है । हर किसी को उसकी आवश्यकता के अनुसार देने और उसकी योग्यता के अनुसार काम लेने का न्याय इसका आधार है। उत्पादन के साधनों का व्यक्तिगत हाथ में रहना इसमें बाधक माना जाता है। उत्पादन के प्रबन्ध में भी यह एक हद के बाद रुकावट है । इसलिए उसे समाज के हाथ में ले लेने का रास्ता भी सुझाया जाता है। आर्थिक समता का सगुण रूप आमदनी और खर्च के अन्तर को एक मर्यादा के भीतर रखने का है। जैसे कम-से-कम आमदनी और खर्च और अधिक-से-अधिक आमदनी
और खर्च १:१० या १:५ या १:३ के अनुपात में हों। . परिसंवाद-२
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