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व्यष्टि एवं समष्टि सम्बन्धी परिसंवाद-गोष्ठी का संक्षिप्त विवरण
२०९ में नया आलोक दे सकते हैं। शान्ति निकेतन के डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय ने प्रतिपादित किया कि व्यक्ति और समष्टि को लेकर आधुनिक समाजशास्त्रियों ने जो विश्लेषण किया है, उससे बौद्धदर्शन का विश्लेषण कहीं अधिक मूलग्राही एवं सोद्देश्य है। दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. सिद्धेश्वर भट्ट ने कहा कि बौद्धों की दृष्टि से व्यक्ति और समाज दोनों की तात्त्विक स्थिति समान है। अर्थात् दोनों व्यावहारिक संरचनाएँ हैं, फिर भी व्यक्ति प्राथमिक स्तर की तथा समाज गौण स्तर की रचना है। वहीं के डॉ० महेश तिवारी ने कहा कि बुद्ध की अवस्था यद्यपि व्यक्ति के स्तर की है, फिर भी उनका व्यक्तित्व समाज के साथ समरस हो गया है। इस अवस्था में व्यक्ति और समाज सम्बन्धी सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं। वहीं के डॉ० केवलकृष्ण मित्तल के अनुसार व्यष्टि और समाज में बौद्ध दष्टि से कुछ भी वैशिष्ट्य नहीं है । कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉ० गोपिकामोहन भट्टाचार्य ने कहा कि बौद्ध धर्म एवं दर्शन व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों के प्रति सदा सतर्क रहे हैं। उनका लक्ष्य केवल निर्वाण नहीं, अपितु जनहित एवं विश्वकल्याण रहा है । सागर विश्वविद्यालय के डॉ० प्रतापचन्द्र का कहना था कि भारतीय विद्या के अध्येताओं का एक बड़ा वर्ग पालि-त्रिपिटक में संगृहीत समाज दर्शन परक विचारों की अनदेखी करता आया है। वैज्ञानिक इतिहास लेखक यह माँग करता है कि विविधता को एक काल्पनिक समरूपता के आवरण में छिपाने की जगह उसको सम्मानपूर्वक उचित स्थान दिया जाय । प्रारम्भिक बौद्धों ने इस समस्या पर गहराई से विचार किया है। केन्द्रीय-तिब्बती-संस्थान के प्राचार्य प्रो० एस० रिम्पोछे और वहीं के आचार्य गेशे थवख्यस ने कहा कि आत्मा का निषेध कर बौद्धों ने व्यक्तिवाद की बुराइयों से लोक की रक्षा की तथा करुणा के द्वारा व्यक्ति का उपयोग समाज के हित में किया। इस तरह व्यक्ति और समाज में एक सामञ्जस्य उपस्थित किया। चण्डीगढ़ के डॉ० धर्मेन्द्र गोयल ने व्यक्ति और समाज सम्बन्धी समस्या के समाधान में बौद्धों की प्रज्ञा और करुणा के अपूर्व योगदान की चर्चा की। नागपुर के डॉ० नारायणशास्त्री द्रविड़ ने बौद्ध दर्शन और रसेल के चिन्तन में व्यष्टि और समष्टि का स्वरूप निरूपित किया। शिलांग (मेघालय) के डॉ० हर्षनारायण का विचार था कि बौद्ध धर्म और दर्शन व्यक्ति की सीमा से ऊपर नहीं उठ सकता है, किन्तु उसमें समष्टिवादी परिणति की सम्भावनायें निहित हैं। मुंगेर के प्रो० हरिशंकर सिंह ने बताया कि माध्यमिक दर्शन में वे सूत्र हैं जो हमारी आज की समस्याओं को सुलझानें में आलोक प्रदान कर सकते हैं।
पूना के प्रो० ए० के० सरन काशी विद्यापीठ के प्रो० राजाराम शास्त्री, प्रो० मुकुट विहारी लाल, प्रो० कृष्णनाथ, प्रो० रमेशचन्द्र तिवारी, कानपुर के श्री के० एन
परिसंवाद-२
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