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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं शर्मा आदि समाजशास्त्र के भारत प्रसिद्ध मनीषियों ने समाजशास्त्र की दृष्टि से व्यक्ति और समाज का विश्लेषण करते हुए कहा कि विश्व में व्यक्तिवादी, समाजवादी एवं समन्वयवादी तीन प्रकार की विचारधाराएँ प्रचलित हैं। प्रथम दो दृष्टियाँ एकान्तवादी हैं । बौद्धदर्शन तीसरी विचारधारा के ज्यादा नजदीक है, किन्तु अध्यात्मवादी होने के कारण बौद्ध दृष्टि इनसे ऊपर है। इस धारा में ऐसे तत्त्व अवश्य हैं, जो मानवीय और सामाजिक समस्याओं के समाधान के नये सूत्र प्रदान कर सकते हैं। आवश्यकता है आधुनिक समाजशास्त्रियों के साथ बैठकर विचारों के आदान-प्रदान की। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संस्कृतविश्वविद्यालय इस दिशा में पहल करेगा। राँची के डॉ० वैद्यनाथ सरस्वती ने मानव विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भारतीय परम्परागत व्यवस्था में व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला। बलिया के डॉ० दीनबन्धु पाण्डेय ने भारतीय बौद्ध कला में व्यक्ति और समाज से सम्बन्धित दृष्टिकोण उपस्थित किया। डॉ० बी० के० राय वाराणसी ने आधुनिक भौतिक, रासायनिक आदि विज्ञानों की दृष्टि से व्यक्ति और समाज का विश्लेषण करते हुए कहा कि भगवान् बुद्ध
और उनके अनुयायियों ने अहिंसा, सेवा, करुणा आदि जिन मानवीय गुणों को प्रतिष्ठित किया उन्हीं से कल्याण की आशा है । शान्तिनिकेतन के डॉ० सुनीति कुमार पाठक ने बौद्धोंके ब्रह्मविहार, बोधिचित्त और ज्वलिता चाण्डाली सिद्धान्तों से वर्तमान समस्या के समाधान में योगदान की चर्चा की। वाराणसी के श्री राधेश्यामधर द्विवेदी ने व्यष्टि और समष्टि के सन्दर्भ में बुद्ध के स्वनियन्त्रित अध्यात्मवाद की चर्चा की। पटियाला के डॉ० लालमणि जोशी ने 'विमलकीतिनिर्देशसूत्र' के विश्लेषण के आधार पर व्यष्टि और समष्टि के सम्बन्धों की विशद चर्चा की। पचमढ़ी के श्री टी० छोगडुब शास्त्री तथा लद्दाख के श्री रशी पलजोर ने महायानी दर्शन और महायानी साधना के आधार पर व्यक्ति, समाज उनके सम्बन्धों के सम्बन्ध में अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। सोलन के डॉ० शान्तिभिक्षु शास्त्री ने अपने संस्कृत निबन्ध में व्यक्ति और समाज के विकास के सन्दर्भ में बौद्ध दृष्टि का विश्लेषण प्रस्तुत किया। दरभंगा के पं० श्री आनन्द झा ने व्यक्ति और समाज का दार्शनिक विश्लेषण करते हुए कहा कि सामाजिक विकास के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि गुणों के विकास की आवश्यकता है। निष्कर्ष
___ व्यक्ति और समाज से सम्बद्ध समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में गोष्ठी में सम्मिलित विद्वानों की राय में बौद्ध दर्शन का मध्यममार्ग उचित समाधान प्रस्तुत कर सकता है। व्यक्तिवादी और समाजवादी दृष्टियाँ एकान्तवादी हैं। बौद्धों का मध्यममार्ग इन एकान्तदृष्टियों का निषेध करता है। उसकी दृष्टि में व्यक्ति महत्त्वहीन
परिसंवाद-२
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