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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं भारतीय दर्शनों में विशेष कर बौद्ध दर्शन ने अपने प्रारम्भिक काल से ही न केवल भारत के अपितु विश्व के अधिकांश जनजीवन को प्रभावित किया है। ऐसे महत्त्वपूर्ण दर्शन के आलोक में व्यक्ति समाज एवं उनसे सम्बद्ध प्रश्नों पर विद्वानों का बैठकर आपस में विचार-विमर्श करना प्रासंगिक, उचित एवं उपयोगी रहा।
दिनांक १० जनवरी ८० को प्रातः ९ बजे काशी विद्यापीठ के कुलपति तथा प्रसिद्ध दार्शनिक एवं समाजशास्त्री प्रो० राजाराम शास्त्री ने परिसंवाद-गोष्ठी का उद्घाटन किया। सम्पूर्णानन्द-संस्कृत-विश्वविद्यालय के कुलपति विद्वन्मर्धन्य प्रो० बदरीनाथ शुक्ल ने उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता की। बौद्धदर्शन विभागाध्यक्ष श्री रामशंकर त्रिपाठी ने समागत विद्वानों का स्वागत किया तथा पालि विभागाध्यक्ष प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ने व्यक्ति एवं समाज से सम्बद्ध वर्तमान समस्याओं का उल्लेख करते हुए विषय प्रवर्तन किया।
बौद्ध दर्शन का प्रसार एवं परिचय विद्वानों में भी प्रायः विरल हो गया है। बौद्ध दर्शनों में व्यक्ति एवं समाज का तात्त्विक विवेचन उपलब्ध होता है, किन्तु बौद्धों की सामाजिक जीवन दृष्टि और उसका व्यक्तिजीवन के साथ सम्बन्ध का व्यावहारिक पक्ष संघ और विनय के नियमों में परिलक्षित होता है। फलतः दर्शन और विनय की दृष्टि से तीन आधारभूत निबन्ध परिसंवाद-गोष्टी की आरम्भ तिथि से लगभग एक माह पूर्व ही विद्वानों की सेवा में प्रेषित कर दिये गये, जिससे विचारविमर्श के द्वारा कुछ निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकें। बौद्ध दर्शन की दृष्टि से दो तथा विनय की दृष्टि से एक निबन्ध था। प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ने 'बौद्ध दष्टि में व्यक्ति, लोक तथा सम्बन्ध' श्री रामशंकर त्रिपाठी ने 'बौद्ध दृष्टि से व्यक्ति एवं समाज' तथा तिब्बती शिक्षा संस्थान के प्रधानाचार्य प्रो० एस० रिम्पोछे तथा वहीं के उपाचार्य श्री सेम्पा दोर्जे ने 'बौद्ध विनय की दृष्टि से व्यक्ति एवं समाज' विषय पर सम्मिलित निबन्ध प्रस्तुत किया। सेमिनार के द्वितीय अधिवेशन में भी ये निबन्ध प्रस्तुत किये गये जिन पर पर्याप्त चर्चा हुई।
विभिन्न बौद्ध दर्शनों, अन्य भारतीय दर्शनों एवं पाश्चात्य दर्शनों को आधार बनाकर व्यक्ति, समाज और उनके सम्बन्धों पर तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए लगभग ३० निबन्धों में दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ० रामचन्द्र पाण्डेय ने कहा कि बौद्ध शून्यवाद और वेदान्त का ब्रह्मवाद दोनों पृथक्-पृथक् व्यक्ति और समाज सम्बन्धी वर्तमान समस्या के समाधान में असमर्थ हैं। यदि किसी तरह दोनों दर्शनों को मिलाया जा सके तो वे विश्व को इस सम्बन्ध परिसंवाद-२
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