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व्यक्ति और समाज : बौद्ध दृष्टि का एक वैज्ञानिक विश्लेषण
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दुनिया का कौन बालक रोगी, वृद्ध और मृतक को नहीं देखता, पर सबमें तो उतनी करुणा नहीं जगती जितनी सिद्धार्थ में । न जाने कितने कठोर बन्धन डाले गए उन्हें बाँधने के लिए, पर चली किसी की ? इकलौते बेटे के माता-पिता का अपार दुलार, राजवैभव का निर्बाध लोभ, पत्नी पुत्र का प्रचण्ड प्यार, धन-यश का ललाम लालच दौड़ दौड़कर रोकते रह गए और वह करुणा की पुकार पर सबको ठुकरा कर निकल ही गया । एक नहीं, अनेक नहीं, हर व्यक्ति इसका जीता जागता उदाहरण है कि जैसे हमारा शरीर बन कर आता है वैसे ही व्यक्तित्व भी ।
समाजशास्त्र कहता है कि अपराध आता है समाज से, क्योंकि व्यक्ति समाज का दास है । तो एक समाज में रहने वाले सभी प्राणी एक से क्यों नहीं ? एक नियम, कानून मानता है दूसरा क्यों नहीं ? फिर समृद्धिशाली क्यों अपराध करता है ? जीव-दर्शन इसका कारण व्यक्ति को, व्यक्तित्व को बताता है । मनुष्य काम पात्र होता है | जैसी इच्छा वैसा संकल्प, जैसा संकल्प वैसा कर्म । कामना की प्रकृति उसके वंशगत जीनों से प्राप्त प्रवृत्ति से मिलती है । नहीं तो एक परिवेश के दो व्यक्ति अलगअलग आचरण क्यों करते हैं ? अपराधी जन्मजात अपराधी होता है । अपराधिता विरासत में मिली होती है । शरीर के अस्तव्यस्त आन्तरिक असन्तुलित रसायन की प्रतिक्रिया है अपराध | अपराध एक शुद्ध व्यक्तिमूलक घटना है हाँ सामाजिक समस्या मान सकते हैं । समाज अपने बच्चों को सिखाता है नैतिकता के आदर्श नियम, पर प्रतियोगिता और संघर्ष पूर्ण समाज में आने पर वे ही बच्चे अपनी-अपनी अभिवृत्ति के अनुरूप उन नियमों का अनौपचारिक रूपान्तर कर डालते हैं । सामाजिक नैतिकता और यथार्थ वैयक्तिकता के बीच की लम्बी-चौड़ी खाईं केवल व्यक्ति की विशेषता का उद्घोष करती है । मनोवैज्ञानिक परीक्षाएँ, अभिरुचि परीक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावलीप्रणाली आदि और कुछ नहीं केवल यही जानने की विधियाँ हैं कि वास्तविक व्यक्तित्व व्यावसायिक व्यक्तित्व से कितना मेल खा पाता है । व्यक्ति में परिवर्तन लाने में समाज के नियम, कानून, दण्डविधान बिल्कुल बेकार सिद्ध हो चुके हैं। हाँ यदि कुछ कर सकता है तो उपयुक्त रासायनिक विधियों का प्रयोग ।
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आधुनिक विज्ञान हमारे व्यक्ति को भी और व्यक्तित्व को भी पूरी तरह आद्योपान्त बदल सकता है । आज वह जीनों को पालने लगा है । उत्परिवर्तन से वह मनचाहे गुण ला सकता है । शरीर के विभिन्न अंगों की कलमबन्दी करके वार्धक्य को भगा सकता है। आज, हमारा रंग, रूप, आदत, गुण सभी कुछ हमारे हाथ में है । रक्त बैंक, चक्षु बैंक, अग्नाशय और वृक्व बैंक आज हर अस्पताल में हैं । हृदय
परिसंवाद २
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