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बौद्धदर्शन तथा रसेल के चिन्तन में व्यष्टि एवं
समष्टि का स्वरूप
डॉ० नारायणशास्त्री द्राविड बौद्धदर्शन, भारतीय विचार परम्परा में विश्लेषणवाद का पुरस्कार कर वस्तुस्वरूप निर्धारण करने वाला एक प्रमुख दर्शन है। अन्य आस्तिक तथा नास्तिक दर्शनों ने विश्लेषण को एक वैचारिक पद्धति के रूप में अवश्य अपनाया है किन्तु विश्लेषण की परमावधि को ही अन्तिम तत्त्व के रूप में अंगीकार कर बौद्धदर्शन ने एक स्वतन्त्र विचारधारा को जन्म दिया है। 'विभज्जवाद' यह अभिधा इसी कारण इस दर्शन को दी गयी है।
पश्चिम की चिन्तनधारा में विश्लेषणवाद के विभिन्न प्रकारों जैसे भाषीयविश्लेषणवाद (लिंग्वस्टिक एनेलसिस) संप्रत्ययिक विश्लेषणवाद (कन्सेप्सनल एनेलसिस) निर्देशात्मक विश्लेषणवाद (प्रेसिनेप्टिव एनेलसिस) आदि का जो विचार हुआ है, उसके पीछे इस शताब्दी के श्रेष्ठ मनीषी वीड रसेल के तार्किक अणुवाद की (लाजिकल एटामिज्म) ही प्रेरणा है। ऐसा मानना अनुचित न होगा। इस अणुवाद में तथा बौद्धों के क्षणभंगवाद में इतना साम्य है कि दोनों की मूलगामी तुलना कर देखने पर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि मानों क्षणभङ्गवाद का ही प्रतिरूप तार्किक अणुवाद हो । स्वलक्षण एवं सामान्यलक्षण वस्तुओं के सिद्धान्त के समान ही रसेल के दर्शन में तार्किक अणु तथा तर्कतः संरचित (लाजिकली कन्स्ट्रक्टेड) पक्ष का विचार है । प्रत्यक्ष तथा वैकल्पिक ज्ञान के बौद्धों के वर्गीकरण के अनुरूप ही रसेल का प्रत्यक्ष एवं वर्णनात्मक ज्ञानों का विभाजन है। कार्य-कारणभाव के स्वरूप के सम्बन्ध में भी बौद्ध तथा रसेल के विचार एक दूसरे से बहुत ही मिलते जुलते हैं। इतना इन दो विश्लेषण वादों में साम्य होते हुए भी कुछ बातें इन दोनों की एक दूसरे से भिन्न भी है।
(१) बौद्धों के विश्लेषणवाद या विभज्जवाद के पुरस्कार के अनेक कारण हैं, समष्टिवाद, सत्तैकत्ववाद या अद्वैतवाद के समर्थक, देश, काल, धर्म, सम्बन्ध, ज्ञान जैसे वस्तुओं के व्यक्तित्व निर्धारक (डिमिनेण्ट आफ इन्डिविडुऐल्टी) तत्त्वों की सामान्यता या एकता के आधार पर वस्तुमात्र की एकता सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इसके प्रत्याख्यान में व्यष्टिवादी यह कहते हैं कि किसी भी वस्तु का व्यक्तित्व परिसंवाद-२
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