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अनेकान्तवाद और अहिंसा : एक शास्त्रीय परिशीलन
यजुर्वेद के प्रथम अध्याय के प्रथम मन्त्र में पशुओं की रक्षा का आदेश दिया गया है। यजु १३ में 'गां मा हिंसीः ' तथा मा हिंसीः' कहा है। इसी प्रकार अथर्ववेद में गाय को 'अघ्न्या' (अहन्तव्या ) कहा है। परिवार तथा समाज में पारस्परिक व्यवहार किस प्रकार किया जाय, इस प्रसंग में कहा गया है 'सहृदयं सामनस्य अविद्वेषं कृणोमि वः । अन्यो अन्यमभिहर्यत वत्संजातमिवाघ्न्या ।'
पुनः
और
स्वसा ।
मा भ्राता भ्रातरं द्विन् मा स्वसारमुत सम्यञ्चः सव्रतो भूत्वा वाचं वदतु
भद्रया ॥'
इसी प्रकार समाज में सभी परस्पर एक समान रहते हुए व्यवहार करें ।
हिंसा से विरत होने और अहिंसा को व्यवहार में लाने में यह सामाजिक राष्ट्रीय व्यवस्था की जाय कि सभी अभय रहें
और पुनः
अभयं मित्रादभयम् अमित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात् ।
अभयं नक्तमभयं दिवानः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तुः ॥ १५
मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे, समीक्षामहे ॥
मित्रस्य
चक्षुषा
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संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । देवाभागं
यथापूर्वे
नानामुपासते ।
किसी गोष्ठी के अन्त में शान्तिपाठ करना चाहिए । शान्ति की भावना लेकर जब सभी लोग अपने-अपने निवास में जायेंगे, वही भाव क्रमशः हमारे जीवन में प्रविष्ट होकर हमें हिंसा से विरत रखेगा ।
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ऐसा संकल्प और तदनुकूल व्यवहार वैदिक समाज में होता था । अब तो लोग चन्द्रमा पर जाते हैं, तो वहाँ भी जाने वाले अभय रहें, शान्ति से रहें, वह हुआ । अब पृथ्वी की परिक्रमा करनेवाले उपग्रह अन्तरिक्ष में जाते हैं ।
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शान्तिपाठ में सर्वत्र शान्ति का आह्वान किया गया है, वही शान्ति पाठ करनेवाले के यहाँ आये । ऐसी शान्ति चाहनेवाले क्या हिंसक हो सकते हैं: “ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिः, ब्रह्म शान्तिः सर्वशान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामाशान्तिरेधि” । ओं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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