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Multi-dimensional Application of Anekantaväda
D. S. Kothari, Modern Physics and Syadvada, in जीत अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ १८७-१९९ ( जयध्वज समिति, मद्रास, १९८६).
आचार्य कुन्दकुन्द, पंचास्तिकाय, ( श्रीकुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट, जयपुर, १९८४) । मूल गाथा क्रमश: इस प्रकार है -
सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणों य तत्तिदयं ।
दव्वं खु सत्तभंग आदेसवसेण संभवदि || १४ ||
इसका संस्कृत अनुवाद आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा रचित निम्नानुसार हैस्यादस्ति नास्त्युभयमवक्तव्यं पुनश्च तत् त्रितयं। द्रव्यं खलु सप्तभंगमादेशवशेन सम्भवति ॥
अन्वयार्थ भी लिखना उपयोगी होगा :
(द्रव्यं) द्रव्य (आदेशवशेन) आदेशवशात् (कथन के वश ) (खलु) वास्तव में (स्यात् अस्ति ) स्यात् अस्ति, (नास्ति ) स्यात् नास्ति (उभयं) स्यात् अस्ति नास्ति, अवक्तव्यं) स्यात् अवक्तव्यतायुक्त तीन भंग वाला (स्यात् अस्तिअवक्तव्य) - सप्तभंगम्) इस प्रकार सात भंग वाला (संभवति) है।
The Feynman Lectures on Physics, Vol. III ( B.I. Publications, Bombay). (R.P. Feynman was awarded Nobel Prize in Physics in 1965)
This is an example of diffraction of electrons by double slit. If we say that n, electrons pass through hole 1 and n, electrons pass through hole 2 then we would arrive at the conclusion that n, electrons suffer single slit diffraction from hole 2. It means if single slit diffraction pattern is P, due to hole 2 (see fig. 1 (b) then the resultant would be n,P,+n,P2. However, we know that two slit diffraction pattern P,, is as given in fig. 1 (c). Since n,P,+n,P2 is not equal to (n,+n,) P12 for any value of n, and n,, we conclude that it is wrong to say that n1 electrons pass through 1 and 2 pass through 2.
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D. S. Kothari, 'Some thoughts on mind, matter and complementarity', Journal of Physics education Vol. 2, No, 2, pp. 13-16, Dec. 1974.
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग ४, पृष्ठ ४९७, यहां लेखक लिखते हैं- "अनेकान्तमयी वस्तु का कथन करने की पद्धति स्याद्वाद है। किसी भी एक शब्द या वाक्य के द्वारा सारी की सारी वस्तु का युगपत् कथन करना अशक्य होने से प्रयोजनवश कभी एक धर्म को मुख्य करके कथन करते हैं और कभी दूसरे को । मुख्य धर्म को सुनते हुए श्रोता को अन्य धर्म भी गौणरूप से स्वीकार होते रहें,
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