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अनेकान्तवाद एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान
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निषेध न होने पावे ; इस प्रयोजन से अनेकान्तवादी अपने प्रत्येक वाक्य के साथ _ 'स्यात' या 'कथंचित्' शब्द का प्रयोग करता है।" ९. उमास्वाति, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय १, सूत्र १ १०. उमास्वाति, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र २१ ११. आचार्य कुन्दकुन्द, समयसार, गाथा २५०। १२. उमास्वाति, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र २९ एवं ३० 13. Norman Vincent Peale, Treasure of joy and Enthusiasm, New
York, 1981) p. 18. 14. Louise L. Hay, You can Heal your life', (Hay House, 3029
Wileshire Blard. Santa Monica (A 90404, USA) १५. जो शुद्ध जाने आत्म को, वो शुद्ध आत्मा प्राप्त हो।
अशुद्ध जाने आत्म को अनशुद्ध आत्मा प्राप्त हो।।१८६॥
___ आचार्य कुन्दकुन्द, समयसार गाथा १८६; हिन्दी अनुवाद १६. सिद्धांतोऽयमुदात्तचित्त चरितैर्मोक्षार्थिभिः सेव्यतां शुद्ध चिन्मयमेकमेव परमं ज्योति: सदैवास्म्यहम् ।
एते ये तु समुल्लसन्ति विविधा भावाः पृथग्लक्षणा
स्तेऽहं नास्मि यतोऽत्र ते मम परद्रव्यं समग्र अपि ।। (जिनके चित्त का चरित्र उदात्त है ऐसे मोक्षार्थी इस सिद्धान्त का सेवन करें कि - मैं तो सदा शुद्ध चैतन्यमय एक परमज्योति ही हूं; और जो यह भिन्न लक्षणवाले विविध प्रकार के भाव प्रगट होते हैं वह मैं नहीं हूं, क्योंकि वे सभी मेरे लिये परद्रव्य हैं) आचार्य अमृतचन्द्र, समयसार कलश क्रं. १८५
आसंसारात्प्रतिपदममी रागिणो नित्यमत्ताः सुप्ता यस्मिन्नपदमपदं तद्विबुध्यध्वमंधाः। एतैतेत: पदमिदमिदं यत्र चैतन्य धातुः शुद्धः शुद्धः स्वरसभरत: स्थायिभावत्वमेति ।।
आचार्य अमृतचन्द्र, समयसार कलश, क्रं. १३८, १८. आचार्य कुन्दकुन्द, समयसार, गाथा ७३; 19. David D. Burns, Feeling Good: The new mood therapy. Singet,
New American library, NewYork, 1981, २०. उमास्वाति-तत्त्वार्थसूत्र, १/३३ २१. हुकुमचन्द भारिल्ल, ‘परमभाव प्रकाशक नयचक्र' टोडरमल स्मारक ट्रस्ट,
जयपुर, १९८९
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