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________________ अनेकान्तवाद एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान 473 उपर्युक्त सारणियों के वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि अनेकान्तवाद या स्याद्वाद शब्दों का विकास मात्र न होकर एक ऐसी शैली है जिसके बिना किसी भी पदार्थ का सच्चा स्वरूप स्पष्ट नहीं हो सकता है। हम क्या हैं? यदि शरीर जीव नहीं है व आत्मा अजर अमर है तो फिर प्राणीरक्षा एवं प्राणिबध में पुण्य-पाप क्यों? ऐसे कई प्रश्न जिज्ञास के मस्तिष्क में आते हैं जिनका उत्तर अनेकान्तवाद के बिना संभव नहीं होता है। यही कारण है कि हमारे आचार्यों ने कई दृष्टिकोणों (नयों) से पदार्थ का स्वरूप समझाया है। कुछ महत्त्वपूर्ण नयों के नाम इस प्रकार हैं- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत; निश्चय, व्यवहार; परमशुद्ध निश्चयनय, शुद्ध निश्चयनय, अशुद्ध निश्चयनय, सद्भूत अनुपचरित व्यवहारनय, सद्भूत उपचरित व्यवहार नय, असद्भूत अनुपचरित व्यवहारनय, असद्भूत उपचरित व्यवहारनय, आदि२१) एक तरह वासनाएं एवं शरीर को भी आत्मा का नहीं माना है तो दूसरी तरफ असद्भूत उपचरित व्यवहार नय से पत्नी, मकान आदि से भी जीव का रिश्ता जोड़ा है अन्यथा स्वपत्नी-परपत्नी एवं सम्पत्ति-पर संपत्ति में भेद ही नहीं रहता। बहुत ही नाप-तौल की भाषा बोलने वाले भौतिक विज्ञान में भी कई स्थानों पर विरोधाभास प्रतीत होता है जिन्हें उपर्युक्त सारणियों में विस्तार से कुछ उदाहरणों द्वारा समझाया गया है। एक सावधानी अनेकान्तवाद के सम्बन्ध में यह भी रखना आवश्यक है कि मिथ्या अनेकान्तवाद से बचकर सम्यक् अनेकान्तवाद अपनाना चाहिये। जैसे एक तरफ किसी व्यक्ति को सभी का मामा ही मान लेना मिथ्या एकान्त होगा क्योंकि वह व्यक्ति किसी का बेटा भी है तो किसी का पौत्र भी है.....। किन्तु यदि अनेकान्त को हम इतना मनमाने ढंग से खींच लें कि हम कहने लगे कि एक ही व्यक्ति किसी का पिता भी होना चाहिए व किसी का पति भी होना चाहिये तो अविवाहित व्यक्ति के लिये ऐसा अनेकान्तवाद मिथ्या अनेकान्तवाद होगा। ऐसा मिथ्या अनेकान्त त्याज्य है। अत: चाहे भौतिक विज्ञान हो चाहे अध्यात्म, अनुभव, प्रमाण एवं तर्क से यह भी सन्तुष्ट कर लेना चाहिए कि वर्णित अनेकान्त मिथ्या अनेकान्त तो नहीं है। सन्दर्भ १. पारसमल अग्रवाल, 'क्वाण्टम सिद्धान्त' (राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, १९८३). २. P. M. Agrawal, Quantum Mechanics in 'Horizons of Physics', edited by A. W. Joshi (Wiley eastern, New Delhi, 1989) p. 25 54. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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