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अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता
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क्योंकि व्यक्ति की उन्नति में समाज के बाद, परिवार को ही उपयुक्त स्थान दिया जाता है।
परिवार पर चार प्रकार के प्रभावों को देखा जा सकता है और प्रभावों का उल्लेख साधार भी है(१) अनुवांशिकता का प्रभाव
___ माता और पिता अथवा उन दोनों के वंशवृक्षों में जो बुजुर्ग हो चुके हैं उनका प्रभाव पड़ सकता है। इसे आधुनकि विज्ञान 'जीन्स्' नाम से पुकारता है। इस सिद्धांत के अनुसार बच्चा अपने माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी- इनमें से किसी के आकार, रंग, गुण, बुद्धि, उत्साह, चेतना- इत्यादि विशेषताओं को प्राप्त कर सकेंगे। अनेक पुरखों के व्यक्तित्व के नीचे ही आज के व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। (२) जीवन के सन्निवेश का प्रभाव •
कभी-कभी एक बुद्धिमान पिता का पुत्र मूर्ख बन सकता है। एक दुष्ट का पुत्र सज्जन हो सकता है। माता-पिता दोनों सज्जन हैं, फिर भी पुत्र दुर्जन, शराबी, जुआखोर बन जाता है। इसका कारण यह है कि पुत्र जैसे सन्निवेश तथा जिस वातावरण में पलता है वैसा ही बन जाता है। (३) पूर्वजन्म के संस्कारों का प्रभाव
अगर हम चौबीस तीर्थंकरों के जन्म जन्मान्तर की भवावली का सूक्ष्मता के साथ अनुशीलन करें तो हमें इस बात का पता चलता है कि पूर्व जन्म के संस्कारों का प्रभाव इस जन्म के जीवन पर भी पड़ता है। हम व्रत नियमों का पालन, तप साधना के द्वारा अपने जीव के स्तर को ऊँचे से ऊँचा, श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बना सकते हैं। (४) शिक्षा का प्रभाव
कभी-कभी नीच कुल में, साधारण माता-पिताओं के वंश में पैदा होकर भी कुछ लोग अद्भुत प्रगति कर पाते हैं तथा उच्च स्थान को प्राप्त करते हैं। इसके लिए उनको दी गयी शिक्षा ही मूलकारण है। अच्छी शिक्षा का प्रबंध किये जाने पर निम्न स्तर वाले उन्नत स्तर पर पहुँच पाते हैं।
इस प्रकार से किसी मनुष्य के पारिवारिक जीवन के व्यक्तित्व के विकास में अनेक कारण हैं। कुछ उदाहरण मिलने पर प्रत्येक कारण भी उचित लगता है परन्तु वही एक मात्र कारण नहीं है। अनेक कारणों का समन्वित प्रभाव मूल कारण माना जायेगा।
परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन आदि अनेक संबंध होते हैं। ये
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