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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
इन राष्ट्रों में भी परस्पर संदेह, ईष्या, मत्सर, अहंकार-जैसे अनपेक्षित मनोभावों के कारण अनैक्य का भाव प्रचलित है। फिर भी मानवीयता, सहोदरत्व, ईश्वर पर विश्वास, मातृत्व, जीवदया, अहिंसा, सत्यनिष्ठा, परिश्रमप्रियता, लोकोपकारजैसे कुछ आदर्श गुणों में एकता दीख पड़ती है।
___ 'परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।
यह एक नितांत महत्त्वपूर्ण एवं मार्गदर्शक वाक्य है जिसका अवलंबन लेते हुए संसार के भिन्न-भिन्न आदर्शों पर चलने वाले राष्ट्रों में भी एकता दीख पड़ती है।
___ समय-समय पर अनेकों राष्ट्रों ने प्राकृतिक आपदाओं, तथा विभीषिकाओं में एक दूसरे की सहायता कर परस्पर सहयोग की भावना को चरितार्थ किया है।
इस तरह की मानवीयता एवं परस्पर सहानभति संवेदना का मनोभाव राज्य-राज्यों के बीच में, जिलों के बीच, तालुकों व गाँवों के बीच में भी विद्यमान है।
___अनेकताओं या भिन्नताओं के होते हुए भी “एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति" - जैसे आदर्श का अनुसरण करते हुए हम यह महसूस करते हैं कि प्रेम हमारे लिए एक मूल्य है, उसकी संवेदनशीलता का रिश्ता भी हमारे लिए अत्यन्त अमूल्य है, इस जग में अपनी समग्र संवेदनशीलता को बचाकर मनुष्य के रूप में जीने का साधन तो यह एक मात्र आदर्श- अनेकान्तवाद का है तथा इस साधन की पवित्रता जीवन की सार्थकता के साध्य से भिन्न नहीं है।
हमारे समाज में विभिन्न पेशे-धंधे व उद्योग करने वाले लोग पाये जाते हैं । कोई किसान है तो कोई मज़दूर है, कोई व्यापारी है तो कोई ग्राहक है। कोई अध्यापक है तो कोई लेखक है। इसी प्रकार से लुहार, सुनार बढ़ई, आदि कुछ लोग हैं तो और कुछ लोग पत्रकार नाटककार, कवि, नेता, सरकारी कर्मचारी, मंत्री इत्यादि तरह-तरह के धंधे अपनाकर अपनी जीविका चलाते हैं। इन अनेकों धंधों में कौन सा धंधा श्रेष्ठ है? कौन सा धंधा प्रधान है? कौन सा धंधा गौण है या निकृष्ट है? इन प्रश्नों का उत्तर उतना आसान नहीं। क्योंकि सबसे बढ़कर किसी एक धंधे को नहीं माना जा सकता। न किसी को कनिष्ठ भी।
' आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने सभी प्रकार के धंधे-कषि, असि-मसि, खेतीव्यापार धंधों को सिखाया। फिर अनेकांतवाद की दृष्टि से देखें तो ये सब श्रेष्ठ हैं- तथा एक दूसरे के परस्पर पूरक हैं। अत: न कोई श्रेष्ठ या न कोई कनिष्ठ है। अनेकान्तवाद-पारिवारिक जीवन में
आधुनिक युग में ‘परिवार' नामक इकाई को विशेष महत्त्व दिया जाता है
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