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राष्ट्रीयता का सजग प्रहरी अनेकान्त
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"हिन्दू" और मुसलमान के आधार पर आजादी के समय विभाजित होकर बने दो देशों के रूप में सामने आया और वह मर्ज आगे बढ़ता ही गया।
यह एक मानक बन गया है कि जो इस्लाम को मानता है वह मुसलमान, वैदिक धर्म को मानने वाला हिन्द, जैन धर्म को मानने वाला जैन, बौद्ध धर्म को मानने वाला बौद्ध, सिक्ख धर्म को मानने वाला सिक्ख एवं ईसाई धर्म को मानने वाले ईसाई हैं। ये परिचय सम्प्रदाय विशेष को ध्यान में रखकर ही सत्य हैं, राष्ट्र की दृष्टि से नहीं। राष्ट्र का उनका परिचय भारतीय होगा यही वजह है कि यहां के व्यक्ति की अमेरिका, ब्रिटेन आदि दूसरे देशों में भारतीय के रूप में पहचान होती है। देश की अपेक्षा, सभी भारतीय हैं और सम्प्रदाय की अपेक्षा, हिन्दू, मुसलमान, आदि। भारतीय होना उनका अनैकान्तिक रूप है और हिन्दू, मुसलमान आदि होना एकान्तिक। विरोध रहित, भ्रातृत्व भाव, मित्रता और सौहार्द पूर्ण ढंग से एक साथ सभी का रहना राष्ट्र के रूप में सत्य है। केवल हिन्दू, मुसलमान आदि होना एकान्तिक मिथ्या रूप है। क्योंकि इसमें दूसरे की सत्ता का अपलाप, तिरस्कार और निरादर है। विभिन्न सम्प्रदाय अंश हैं अंशी-राष्ट्र के और जब कोई भी अंश खण्डित होने लगता है तब निश्चित रूप से राष्ट्र के खण्डित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
व्यक्ति जिस देश में रहता है उस देश को ही अपनी प्रमुख पहचान बनाये और उस देश को ही अपना देश समझे तो उसमें उसका कल्याण होता है। राष्ट्र हित के सन्दर्भ में धर्म के आधार पर अपनी पहचान बनाकर एक धर्म प्रधान देश से अपने को संयुक्त कर पहचान बनाना अत्यन्त घातक सिद्ध होता है। कुछ धर्मावलम्बी अपने को “हिन्दू'' क्यों नहीं कहते, जबकि इस देश का नाम “हिन्दुस्तान' है। इसका समाधान तब तक असम्भव लगता है जब तक "हिन्दू" शब्द की पहचान मात्र वैदिक धर्म तक ही सीमित बनी रहेगी। ऐसा होते हुए मुसलमान अपने को हिन्दू कहने में संकोच करेंगे, क्योंकि उनका धर्म इस्लाम है। इसी तरह अन्य धर्मों, सम्प्रदायों के साथ भी है। धर्म के आधार पर कोई भी धार्मिक सम्प्रदाय अपनी कुछ भी पहचान बनाये, परन्तु देश के सन्दर्भ में उसको जोड़ना समस्याओं का समाधान नहीं है। देश के सन्दर्भ में देशवासी की पहचान ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी मंच या सम्प्रदाय के साथ विरोध उत्पन्न न हो । आज के सन्दर्भ में यह निर्णय करना अपरिहार्य हो गया है कि अल्प-संख्यकों को देश की मुख्य-धारा से जोड़ने के लिए "हिन्दू" शब्द की व्याख्या देशवासी के रूप में करनी होगी, धर्म या सम्प्रदाय के रूप में नहीं। यदि यह सम्भव न हो सके तो सर्वस्वीकृत नाम 'भारत' के आधार पर अपनी पहचान “भारतीयता" को ही एक मात्र राजनैतिक स्वीकृति मिलनी चाहिए, एकान्तिक पक्ष को पतित करने वाले "हिन्दू" आदि को नहीं।
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