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Multi-dimensional Application of Anekantavāda
संवेदनाएं एक जैसी हैं। दुःख कोई नहीं चाहता । घर या देश विहीन भी कोई नहीं होना चाहता । फिर भी यह कहा जाता है कि यह देश हमारा ही है, दूसरे का नहीं । एकान्तिक दृष्टि से इस तरह के विचार राष्ट्र के स्वरूप को ही विघटित करते हैं। अनेकान्तात्मक विचार होने पर एक दूसरे का अस्तित्व सहजता से स्वीकार हो जाता है। किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष का यदि यह भाव रहता है कि हमारा धर्म या सम्प्रदाय राष्ट्रीय है, उस स्थिति में उसका अनेकान्तमूलक आचरण भी होना अनिवार्य है। जिससे अन्य अपनी सत्ता या संस्कृति को पूर्ण सुरक्षित और समान समझकर आश्वस्त हो सकें एवं वे अंशी राष्ट्र के अंश होने में अपनी निष्ठा को असंदिग्ध बना सकें।
हिन्दू या भारतीय
इस देश के लिए भारत, हिन्दुस्तान, और इण्डिया नाम प्रचलित हैं। इसके आधार पर यहां के लोग भारतीय, हिन्दू या हिन्दुस्तानी और इण्डियन कहे जाते हैं। इसलिए इसमें से किसी एक से अपने को अभिहित किया जाये तो इस देश के वासी के रूप में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर कुछ लोग अपने को "हिन्दू" या हिन्दुस्तानी” नहीं मानते। दरअसल "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति का आधार भूगोल है। जो "सिन्धु" के पार रहने वालों के लिए प्रयुक्त होकर 'सिन्धु से" हिन्दु बन गया। अपने मूल रूप में "हिन्दू" शब्द नितान्त संस्कृति मूलक है जिसके अन्तर्गत वैदिक, श्रमण-जैन-बौद्ध आदि सभी धर्म आते हैं और सभी हिन्दू की संज्ञा को प्राप्त करते हैं। कतिपय कट्टरवादियों और कुछ देश प्रेमियों ने "हिन्दू" शब्द की संगति वैदिक काल से बैठाकर शाब्दिक दृष्टि से हिन्दू धर्म का प्रचलन प्राचीन सिद्ध किया है । कट्टरवादी "हिन्दू" शब्द के साथ “धर्म शब्द जोड़कर निरन्तर इस प्रयत्न में लगे रहे कि जो वैदिक धर्मावलम्बी हैं वे ही हिन्दू हैं। दूसरी ओर उदारवादियों ने हिन्दुत्व - राष्ट्रीयत्व को ही अपना धर्म माना अर्थात् उन्होंने देश धर्म की सीमा के अन्तर्गत ही अपने धर्म की मीमांसा की। उदारवादियों के द्वारा यह मीमांसा या अर्थ किये जाने तक कहीं भी विरोध दिखाई नहीं देता। जब वैदिक-धर्म को हिन्दू धर्म कहा जाने लगा तब भारतीय-संस्कृति से जुड़े जैन, बौद्ध और सिक्ख आदि अलग प्रतीत होने लगे और इनकी हिन्दूधर्म, जैनधर्म, बौद्धधर्म, सिक्ख धर्म आदि के रूप में अलग- अलग पहचान स्थिर हो गयी । इनके अतिरिक्त भी यहां पर इस्लाम, ईसाई आदि स्वतन्त्र धर्म हैं, जो मूल भारतीय संस्कृति से उद्भूत धर्म नहीं माने जाते हैं। ये धर्म सिन्धु के उस पार या दूसरे देश से यहाँ, पर आये हुए माने जाते हैं । भारतीय संस्कृति की प्रकृति के अनुरूप इन धर्मों के हिन्दू धर्मों के साथ रहने में विशेष टकराहट नहीं थी । अंग्रेजों के आगमन के साथ आपस में टकराहट का सूत्रपात प्रारम्भ हो गया और इसकी पराकाष्ठा का बढ़ता रूप
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