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Multi-dimensional Application of Anekantavāda
राष्ट्र के साथ किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष का सूचक शब्द संयुक्त होने पर इतर धर्मों या सम्प्रदायों की सत्ता राष्ट्रीयता की दृष्टि से गौण प्रतीत होती है। भारत के आधार पर अपने को भारतीय कहने में किसी भी सम्प्रदाय को आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि उक्त नाम के साथ किसी भी सम्प्रदाय या धर्म को सूचित करने वाला शब्द संयुक्त नहीं है। दूसरे यह महान संस्कृतियों का संसूचक, आदि से लेकर अब तक की विभिन्न सभ्यताओं का जीवंत ऐतिहासिक दस्तावेज है। प्राचीनता, ऐतिहाकसता एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह सभी के अनुकूल है। वैदिक और श्रमण दोनों संस्कृतियों में "भरत" के नाम से "आर्यावर्त" का भारत नाम पड़ना प्रसिद्ध है। भारतीयता के रूप में हमारी संस्कृति की अहिंसा, करुणा, मैत्री, दया, त्याग, दान, अपरिग्रह, सत्य, अस्तेय, मुदिता, शान्ति, सन्तोष, आत्मौपम्य दृष्टि आदि अनन्त विशेषताएं हैं। परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले धर्म या सम्प्रदाय सापेक्ष दृष्टि से एक साथ रहते रहे हैं। यदि कभी टकराहट हुई तो सत्य या अनेकान्त दृष्टिकोण के अभाव में हुई । टकराहट, वस्तुस्थिति को समझने के पश्चात् एकान्तिक दृष्टि के परित्याग से स्वतः समाप्त हो गयी।
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इस प्रकार हिन्दू हो या ईसाई - मुसलमान, जैन-बौद्ध हो या सिक्ख ये सभी परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं, पर वास्तव में ये परस्पर विरोधी नहीं हैं। एक राष्ट्र के सन्दर्भ में उन सभी की एक जगह एक साथ सत्ता पाई जाती है। सभी में मनुष्यत्व आदि गुण समान हैं। शारीरिक संरचना एक जैसी है । सवेदनाएं समान हैं, परमलक्ष्य की प्राप्ति रूप साध्य भी प्राय: समान है। कुछ विचारधाराएं परस्पर विरुद्ध प्रतीत होती हैं, परन्तु वे प्रतीत ही होती हैं परस्पर विरोधी नहीं हैं। कुछ के परस्पर विरुद्ध दृष्टिकोण भी हो सकते हैं जिनका समाधान सापेक्ष दृष्टि होने पर सहजता से हो जाता है । विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रों आदि के आधार पर उत्पन्न सभी समस्याओं के साथ आज की विषम परिस्थितियों के सन्दर्भ में राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता जैसे ज्वलंत प्रश्नों का समाधान मात्र अनेकान्तात्मक दृष्टिकोण रखने पर ही सम्भव हो सकता है। राष्ट्रीयता - भारतीयता की पहचान एकान्तिक धर्म या सम्प्रदाय के आधार पर न स्थिर रही है और न रहेगी। देश की अक्षुण्ण महासत्ता का अस्तित्व सभी की सत्ताओं की स्वीकृति में ही सम्भव है।
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