________________
अनेकान्तवाद की उपयोगिता
307
३१. अनेकांतवाद - डॉ० भागचन्द्र जैन पृ०- १३-१४ ३२. श्री अमर भारती, अगस्त-८५ पृ०-२२ ३३. स्याद्वाद सिद्धांत : एक अनुशीलन पृ०-२७ ३४. श्री अमर भारती, अगस्त-८५ पृ०-२२ ३५. Philosophy of our Times, C.E.M. Joad. P-41. ३६. Louis Fischer- The Great Challanges. ३७. जैन शासन- एस० सी० दिवाकर पृ०-१७०-१७१ ३८. भारतीय दर्शन- केदारनाथ सिंह और एस० बी० सिंह पृ०-९८ ३९. आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रंथ (अनेकांतवाद स्याद्वाद, सप्तभंगी लेखक नथमल
टाटिया६१) ४०. भारतीय दर्शन- एस०एन० दास गुप्त भाग-१ पृ०-१७६ ४१. Studies in Jain Philosophy by Nathmal Tatia P.22 ४२. श्रमण जुलाई-सितम्बर- १९९० पृ०- १८-१९ ४३. श्रमण जुलाई-सितम्बर-९० पृ०-२४ ४४. भारतीय दर्शन- के० एन० सिंह और एस० बी० सिंह, पृ०-९८ ४५. अहिंसा संदेश (जैन धर्मांक) सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर-९८ पृ० ४६. भारतीय दर्शन- के० एन० सिंह और एस० बी० सिंह, पृ०-९९ ४७. भारतीय दर्शन-डॉ० बी० एन० सिंह, पृ०-१५२ ४८. भारतीय दर्शन-डॉ० बी० एन० सिंह, पृ०-९८ ४९. संभाव्यता के अनुसार शून्य (०) और एक (१) अर्थात् पूर्ण सत्ता के बीच
अनेक संभावनाएं हैं। उन्हें विभिन्न संभावित सत्यता मूल्यों के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। जैसे १/२, १/३, १/४, १/५,१/६...... में इत्यादि । इसी प्रकार जैन तर्कशास्त्र भी सत्ता के संदर्भ में अनंत धर्मों अर्थात् अनंत संभावनाओं को स्वीकार करता है। 'स्याद्वाद और सप्तभंगा' बी० आर० यादव,
पा० वि० शो० सं० वाराणसी, १९८९ पृ० १९६ । 40. Indian Philosophy by K.N. Singh & S.B. Singh P. 98-99 ५१. Indian PhilosophyVol. I. P. 305-6 ५२. A Critical Survey of Indian Philosophy, C.D. Sharma P.57 ५३. भारतीय दर्शन-केदारनाथ सिंह एवं शशि भूषण सिंह, पृ०-९९ ५४. अहिंसा-संदेश,सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर-७८ ५५. श्री अमर भारती, अप्रैल-९१ पृ०-१९ ५६. सूत्रकृतांग १-१-२-२३१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org